सरकार ने जो चाहा वही हुआ, मिठाई बांटने वाले अध्यापकों के चेहरे मुरझाए

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पंकज शुक्ला,

एक राजनेता अपने कार्यकतार्ओं की सभा में एक जिन्दा मुर्गा ले कर पहुंचा। बैठक में वह मुर्गे के पंख को खींच-खींच कर फेंकने लगा। मुर्गा तड़पने लगा। उसने मुर्गे के सारे पंख नोंच कर उसे जमीन पर फेंक दिया। अब उसने अपनी जेब से थोड़े दाने निकाल मुर्गे के आगे डाल दिए। दाने देखते ही मुर्गा अपनी सारी तकलीफें तुरंत भूल गया और खुश हो कर दाने खाने लगा। नेता ने अपने कार्यकतार्ओं से कहा जनता इस मुर्गे की तरह होती है। उसे बेसहारा, लाचार, मजबूर और बेबस करना होगा। बाद में जब थोड़े टुकड़े फेंकोगे तो वह जीवन भर आपकी गुलाम रहेगी।

यह कहानी सुनाते हुए एक शिक्षक ने कहा कि मप्र के अधिकांश कर्मचारी संगठनों खासकर अध्यापकों के संगठन की हालत कमोबेश ऐसी ही हो गई है। अपने हितों के संघर्ष में बंटे नेता संगठन और व्यापक समूह के हितों पर एक राय नहीं है। इस तरह संगठन के विभाजन से सरकार राहत में है।

मामला कुछ यूं है कि मप्र सरकार ने शिक्षाकर्मियों, जो बाद में अध्यापक कहलाए, के बरसों के संघर्ष को देखते हुए बीते हफ्ते अध्यापकों को शिक्षा विभाग में संविलियन का तोहफा दे दिया। यह वह तोहफा था जिसका इंतजार वे 1994 से कर रहे थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति कर शिक्षा विभाग में नई संस्कृति को जन्म दिया था।

समान कार्य, समान वेतन का यह संघर्ष 29 मई 2018 को शिवराज कैबिनेट में हुए निर्णय तक जारी रहा। इस कैबिनेट में निर्णय लिया गया कि अध्यापक संवर्ग की सेवाओं का संविलियन शिक्षा विभाग में किया जाएगा। फैसला होते ही सवा दो लाख अध्यापक समाज में खुशी की लहर दौड़ गई। जय-जयकार हो गई। मिठाइयां बांटी गईं, मगर ज्यों ही संविलियन के स्वरूप की बात हुई अध्यापक संघ के नेताओं के चेहरे मायूस हो गए।

पता चला कि अध्यापक संवर्ग का संविलियन प्रस्तावित ह्यम.प्र राज्य स्कूल शिक्षा सेवा (शैक्षणिक संवर्ग) भर्ती नियम 2018ह्ण के तहत नवगठित सेवा में होगा। इसके तहत प्राथमिक शिक्षक, माध्यमिक शिक्षक और उच्च माध्यमिक शिक्षक नामक कैडर बनाया जाएगा। यह सेवा एक जुलाई 2018 से प्रभावशील होगी। यह जानकार अध्यापकों की खुशी काफूर हो गई है कि नया संवर्ग बनने से 1994 में भर्ती हुए शिक्षकों की वरिष्ठता तथा 2013 में भर्ती हुए शिक्षकों की वरिष्ठता समान हो जाएगी। सभी शिक्षकों की नियुक्ति 1 जुलाई 2018 से मानी जाएगी।

यानि वरिष्ठता के सारे लाभ, भत्ते, पेंशन आदि की पात्रता खत्म। नया कैडर नई नौकरी। अध्यापकों का कहना है कि वे 2007 में भी अपने हक को ऐसे ही संवर्ग बदलने पर खो चुके हैं। अब नहीं खोना चाहते। दूसरा, उन्हें इस बात का भरोसा नहीं है कि वर्तमान शिक्षक संवर्ग चार साल में खत्म हो जाएगा। यह तो करीब 17 साल और चलेगा। ऐसे में समान कार्य समान वेतन की मांग पूरी कहां हुई

इस घोषणा से सरकार को राहत मिली कि अध्यापक दो धड़े में बंट गए। जो वरिष्ठ हैं उनके अपने लाभ खोने का डर है और वे चुनाव के पहले लड़ कर अपना हक बचाना चाहते हैं जबकि तुलनात्मक रूप से जूनियर शिक्षकों का कहना है कि सरकार ने इतना दिया। आगे भी बात कर लाभ पाए जा सकते हैं, अब संघर्ष का क्या अर्थ

यह संघर्ष केवल मतभिन्नता का नहीं है बल्कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा का भी है। भाजपा ने शिक्षाकर्मियों के जुझारू नेता रहे मुरलीधर पाटीदार को 2013 में विधानसभा का टिकट दिया था। पाटीदार सुसनेर से विधायक बने भी। अध्यापकों का मानना है कि उनके कुछ और नेता भी टिकट की चाह में सरकार के सुर में सुर मिला रहे हैं जबकि आम अध्यापक नए संवर्ग के पक्ष में नहीं है।

सरकार ने चुनाव प्रबंधन की दृष्टि से सुरक्षित दांव चला है, मगर व्यापक रूप से देखें तो 1998 से चले आ रहे शिक्षाकर्मियों (अब अध्यापक) के आंदोलन, धरना, प्रदर्शन, हड़ताल का अंत नहीं हुआ है। यह जारी है। सरकार के फैसले का लाभ हुआ या नहीं इस पर मत भिन्नता हो सकती है, मगर इस पर एकमत है कि निकट भविष्य में तो मप्र की शिक्षा व्यवस्था नहीं सुधर रही। अध्यापक अपने हकों को लेकर बैचेन, व्यथित होकर आंदोलन करते रहेंगे और शिक्षा व्यवस्था पंगु बनी रहेगी।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है