नई दिल्ली। एनएन वोहरा ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के तौर पर एक दशक का कार्यकाल पूरा किया है। केंद्र सरकार ने बिहार के राज्यपाल को जम्मू और कश्मीर की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया है। करीब 51 साल बाद ऐसा मौका आया है जब किसी राजनेता को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल चुना गया है। माना जा रहा है कि यह फैसला केंद्र सरकार की जम्मू-कश्मीर में रणनीति में बदलाव का संकेत है।
The Governor of Bihar, the responsibility of Jammu and Kashmir, came after 51 years, signs of change in the center’s strategy
सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि एक समाजवादी नेता को जम्मू कश्मीर भेजना नई दिल्ली की की रणनीति में बदलाव का संकेत है। जम्मू-कश्मीर में अब तक ब्यूरोक्रेट्स या सेना से जुड़े आॅफिसरों को ही राज्यपाल बनाया जाता था। केंद्र सरकार की रणनीति में बदलाव के संकेत उस समय मिले थे, जब 15 अगस्त पर भाषण के दौरान पीएम मोदी ने अगले महीने राज्य में स्थानीय चुनाव की बात कही थी। इसके अलावा इसे राज्य में राजनीतिक स्थिरता लाने की कोशिश भी माना जा रहा है।
बीजेपी सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार चाहती थी कि किसी ब्यूरोक्रेट या रिटायर्ड जनरल की जगह राजनीतिक खेमे से किसी व्यक्ति को यह जिम्मेदारी सौंपी जाए, ताकि कश्मीर में नए ढंग से बातचीत का प्रयास हो सके। सत्यपाल मलिक 51 साल बाद ऐसे राज्यपाल हैं, जो राजनीतिक पृष्ठभूमि से आए हैं। इससे पहले 1965 से 1967 तक करन सिंह को यह मौका मिला था। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि इस पद के लिए दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के नामों पर भी चर्चा की जा रही थी, लेकिन केंद्र सरकार ने मलिक के नाम को तरजीह दी। मलिक की नियुक्ति ऐसे समय हुई है जब राज्य में राजनीतिक स्थितियां भी बदल रही है। चर्चा है कि महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी के कुछ असंतुष्ट विधायक बीजेपी से हाथ मिला सकते हैं।
कौन हैं सत्यपाल मलिक?
विभिन्न दलों से जुड़े रहे मलिक ने अपने छात्र दिनों में मेरठ विश्वविद्यालय में सोशलिस्ट नेता के तौर पर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत की थी। बाद के दिनों में वह बीजेपी के उपाध्यक्ष बने और पिछले साल बिहार के राज्यपाल नियुक्त किए गए। अपने लंबे राजनीतिक करियर में मलिक भारतीय क्रांति दल, लोक दल, कांग्रेस और जनता दल और बीजेपी में रहे। 1974 में उत्तरप्रदेश के बागपत से चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल से वह विधायक बने। वह 1984 में कांग्रेस में शामिल हुए और पार्टी से राज्यसभा सदस्य बने, लेकिन बोफोर्स घोटाले की पृष्ठभूमि में तीन साल बाद इस्तीफा दे दिया। वह 1988 में पाला बदलकर वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल में शामिल हो गए और 1989 में पार्टी के टिकट पर अलीगढ़ से सांसद बने।
2004 में मलिक बीजेपी में शामिल हुए। चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह के सामने उन्हें लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। चार अक्तूबर 2017 को बिहार के राज्यपाल का पद संभालने के पहले वह बीजेपी के किसान मोर्चा के प्रभारी थे। मलिक केंद्रीय संसदीय कार्य और पर्यटन राज्यमंत्री रह चुके हैं। वह केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकारों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं।