भोपाल। प्रदेश में विधानसभा चुनाव कार्यक्रम का ऐलान कभी भी हो सकता है, लेकिन राजनीतिक दलों के बीच से मुद्दे पूरी तरह से गायब हैं। विपक्ष अभी तक एक भी मुद्दे पर सरकार की घेराबंदी नहीं कर पायाा है, वहीं सरकार के विकास के आंकड़ों को भी जनता नजरअंदाज कर रही है। राज्य की राजनीति सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप तक सिमट कर रह गई है। दोनों दल आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के बीच सिमट कर रह गया है, जबकि जनमत के मुद्दे चुनावी मैदान से पूरी तरह से गायब हैं।
The politics of the state has been entangled between the two classes;
प्रदेश में एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण का मुद्दा गहराया हुआ है, दोनों वर्गों ने सरकार और राजनीतिक दलों की कमजोरी मानकर विरोध की गति तेज कर दी है। ऐसे में चुनाव में बड़ा वोट बैंक सिखसने के डर से न तो भाजपा पूरी तरह से मुंह खोल पा रही है और न ही कांगे्रस सड़क पर उतर पा रही है। राजनीतिक दलों और सरकार की चुप्पी की वजह से अभी दोनों प्रमुख मुद्दों पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इस आपाधापी में विपक्ष जनहित के मुद्दों पर न तो सरकार की घेराबंदी नहीं कर पा रहा है, न ही चुनाव से पहले सरकार के खिलाफ बड़ा माहौल बना पा रहा है। यही वजह है कि विपक्ष विधानसभा चुनाव में कोर्ट बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर पा रहा है।
नेताओं ने साधी चुप्पी
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर फैसला दिया है। इससे पहले एसटी-एसटी एक्ट में संशोधन पर फैसला दिया था। इन दोनों मुद्दों पर समाज दो वर्गों में बंटा हुआ है। लेकिन वोट बैंक के चलते कोई भी राजनीतिक दल अपनी चुप्पी तोड?े को तैयार नहीं है। यहां तक राजनीतिक दलों की ओर से पार्टी नेताओं को इन ज्वलंत मुद्दों से दूर रहने की नसीहत दी गई है।
दब गए घपले घोटाले
चुनाव में आमतौर पर विपक्षी दलों द्वारा सत्ता पक्ष को उसके गलत फैसलों, घपले, घोटालों को लेकर घेरा जाता है। लेकिन इस बार विपक्ष एक भी घोटाले को लेकर सरकार को नहीं घेर पाया है। जबकि विपक्ष द्वारा सरकार पर हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाते हैं।