मुश्किल में जान, खुद मिले न राम…

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राघवेंद्र सिंह

देश में सियासत और सामाजिक सरोकार से जुड़े मामलों में हालात बेहद दुविधा पूर्ण है। स्थिति यह है कि किसान बिल कोरोना से लेकर देश में होने वाले चुनाव में सरकार की गाइडलाइन कुछ और है जो हो रहा है वह उससे उलट है। जो कुछ चल रहा है उसे देख कर एक देसी कहावत याद आती है ” नदी में बह के बह गए और उतराई की उतराई लग गई।” कृषि बिल को लेकर संसद में खूब हंगामा हुआ और कमजोर विपक्ष के चलते सरकार ने उसे अपनी शर्तों पर पारित करा लिया कमजोर से तात्पर्य यह है कि जो प्रतिपक्ष सरकार की नीतियों का सड़क पर तगड़ा विरोध न कर सके उससे सरकार डरती नहीं है विपक्ष संसद में तो खूब हंगामा करता है लेकिन सड़क पर उसकी बत्ती गुल हो जाती है । यही कमजोरी उसे सरकारी फैसलों को रोकने में नाकामयाब बनाती है। कोरोना, कृषि बिल और चुनाव को लेकर सियासत करने वालों की करनी कथनी में इतना अंतर है कि आम जनता दुविधा में पड़ी हुई है, उसे समझ मे नही आ रहा है कि सरकार और सियासत करने वाले कोरोना और चुनाव में जो गाईडलाइन तय करते है आखिर वे उसका पालन क्यो नही करते?

कुल मिलाकर देश के हालात को देखकर एक और बात याद आ रही है की अच्छी बातें तो बुरे लोग भी करते हैं असल में आदमी अपने आचरण से पहचाना जाता है। भोपाल से लेकर पटना होते हुए दिल्ली तक सियासत और सरकार में बैठे लोग बातें तो अच्छी कर रहे हैं लेकिन उनके आचरण का हकीकत से कोई तालमेल नजर नहीं आता है। बात मध्यप्रदेश में 28 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव की करें तो कल तक जो कांग्रेस

भाजपा में जाने वाले विधायकों को गद्दार कहती थी और इसी को मुद्दा बनाकर चुनाव में उतरने की रणनीति पर काम कर रही थी अब भाजपा के गद्दारों को कांग्रेस में शामिल होने पर खुद्दार मानती दिख रही है । यही दोहरा चरित्र कार्यकर्ताओं और जनता को दुविधा में डाले हुए है। राजनीति में दलबदल कोई नई बात नहीं है लेकिन जिस दल बदल के चक्कर में कमलनाथ की सरकार चली जाती है उप चुनाव की तैयारी में कांग्रेस भाजपा के दल बदलू नेताओं को अपना उम्मीदवार घोषित करने के साथ ही गद्दार और खुद्दार की लड़ाई में जनता के सामने कमजोर पड़ती दिखाई देती है। यह अलग बात है कि कांग्रेस उपचुनाव पूर्व की तैयारी में भाजपा की अपेक्षा से ज्यादा बढ़त लेती हुई दिख रही है। मिसाल के तौर पर की विधानसभा और सांवेर विधानसभा में कांग्रेस ने जो प्रत्याशी मैदान में उतारने का ऐलान किया है दोनों ही कांग्रेस की भाषा में कहें तो वह भाजपा के गद्दार हैं जिन्हें कांग्रेस अपने लिए खुद्दार समझ कर चुनाव में उतार रही है। सुर्खी क्षेत्र में कांग्रेस ने भाजपा से बगावत कर नेवाली नेता पारुल साहू को मैदान में उतारने का ऐलान किया है । इसी तरह तुलसी सिलावट के खिलाफ सांवेर से कभी कांग्रेस और फिर उसके बाद भाजपा और अब फिर कांग्रेस में शामिल हुए प्रेमचंद गुड्डू को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है। कुल मिलाकर गद्दार और खुद्दार के मामले में कांग्रेस एक तरह से कंफ्यूज है। जाहिर है कि इसका लाभ भाजपा उठाने की कोशिश करेगी।

इसी तरह खेती को लाभ का धंधा और किसानों की आय दुगनी करने का जुमला भाजपा ने चुनाव के समय वोट बटोरने के लिए खूब उठाया था। अब लोकसभा में भाजपा ने विपक्ष के भारी विरोध के बीच कृषि बिल दोनों सदनों में पारित करा लिया । इसके आधार पर किसानों के उत्पादन को खुला बाजार देने का वादा किया और कहा कि मंडी व्यवस्था लागू रहेगी और किसान देशभर में अपनी फसल बेच सकेंगे। लेकिन विपक्ष ने कहा कि कृषि बिल में जो प्रावधान है उससे किसान और कमजोर होगा निजी क्षेत्र

ज्यादा इसका लाभ लेंगे। कुल मिलाकर आय दुगनी करने के नाम पर किसान उद्योगपतियों का मजदूर बनकर रह जाएगा। विपक्ष का कहना है कि अब देश की खेती किसानी कारपोरेट सेक्टर के हाथ में जाने के इंतजाम सरकार ने कर दी है। आज नहीं तो कल जो किसान अपने छोटे-छोटे खेतों का मालिक था अब वह उद्योग पतियों का मजदूर बनेगा। इस मुद्दे पर आने वाले दिनों में विपक्ष सड़क पर सरकार के खिलाफ आंदोलन करेगा। अकाली दल की नेता और केंद्र में मंत्री हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा विपक्ष के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है। कृषि बिल के प्रावधान बिहार विधानसभा और मध्य प्रदेश के 28 उपचुनाव में भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। किसानों की हालत पहले से ही खराब है और अतिवृष्टि ने उन्हें और मुश्किल में डाल दिया है ऐसे में पुराने बीमा कि जो कम राशि किसानों के मिली है उसने भी बड़ा असंतोष पैदा किया है। जबकि सबको मालूम है कोरोना काल के चलते देश की अर्थव्यवस्था को बचाने में अगर किसी ने सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है तो वह किसान और केवल किसान हैं।

मध्य प्रदेश की सियासत – सरकार और उपचुनाव की बात करें तो पूरा दारोमदार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया व भाजपा संगठन पर टिकेगा। जहां तक संगठन की बात है कार्यकर्ताओं को मनाने और बागियों को शांत करने में ज्यादा कामयाब नहीं हो पा रहा है। सुर्खी से पारुल साहू चंबल क्षेत्र से मुन्नालाल गोयल और मालवा से प्रेमचंद गुड्डू का भाजपा छोड़कर जाना बताता है किस संगठन जितना कमजोर विधानसभा के पिछले आम चुनाव में था उसकी वह कमजोरी अभी भी बरकरार है ।

उसे मजबूत करने की सारी कोशिश और नुस्खे कोई नतीजे नहीं दे पा रहे हैं। ऐसी हालत में संगठन पर सत्ता का जो गुरूर छाया हुआ है वह भी उसे कार्यकर्ताओं का दिल जीतने के बजाय उनमें नाराजी और एक हद तक नफरत पैदा कर रहा है कोई ऐसा नेता नहीं है जो कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर उनके दिल का गुबार निकलवाए और फिर पार्टी के लिए काम करने की दिशा में प्रेरित करें। इस तरह के बिगड़े मिजाज पार्टी के लिए करेला और नीम चढ़ा जैसा साबित हो रहे हैं।सुर्खी और सागर से लेकर चंबल क्षेत्र के भाजपा उम्मीदवारों का व्यवहार भी पार्टी के लिए भारी पड़ रहा है ।असल में कमलनाथ सरकार में जो मंत्री बने थे उनके 15 महीने का व्यवहार उपचुनाव में नाराज कार्यकर्ता कर नहीं मनाए गए तो सूद समेत लौट आने की तैयारी में लगे हैं। दलबदल करने वाले कुछ नेताओं पर यह कहावत चरितार्थ होने वाली है कि
” खुदा ही मिला न विसाले सनम, इधर के रहे न उधर के हम “…

 

कोरोना में पत्रकार बिनवाल को खो दिया…

कोरोनावायरस के मामले में सियासत और सरकार के स्तर पर भारी लापरवाही देखने को मिल रही है जिसका खामियाजा आम जनता को उठाना पड़ रहा है अस्पताल भर गए और हर दिन मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है इसके बावजूद सियासी दल उप चुनाव की तैयारी में बैठक सभा करने में जुटे हुए हैं इन सब को देख कर लगता है कि कोरोना से बचाव की जो गाइडलाइन कागज पर जारी की गई है हकीकत उसका पालन नहीं हो रहा है। इसमें सरकारी नहीं दूसरों को नसीहत देने वाले मीडिया हाउस भी कम दोषी नहीं है स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्र और टीवी चैनल भी गाइडलाइन का पालन नहीं कर रहे हैं। इंदौर व भोपाल से निकलने वाले अखबार तथा चैनल के दफ्तरों में कोरोना को लेकर जारी एडवाइजरी का उल्लंघन हो रहा है इसमें पहले ही कहा है की अच्छी बातें तो बुरे लोग भी करते हैं लेकिन आदमी अपने कर्मों से पहचाना जाता है इसी तरह संस्थान भी अच्छी बातें करते हैं लेकिन उनके आचरण से वे पहचाने जाते हैं और करोना को लेकर सब हम्मा में नंगे हैं

इंदौर से प्रकाशित एक समाचार पत्र के वरिष्ठ पत्रकार मनोज बिनवाल को कोरोना के चलते हमने खो दिया है । ऐसे कई पत्रकार साथी सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वाले सड़क के लोग संकट में है। इसी बीच शैक्षणिक संस्थाओं को भी कल से खोलने की तैयारी है लेकिन हमारी दिन भर में जितने भी परिवार से चर्चा हुई भी कोई भी वैक्सीन के आने के पहले अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं है कल सूने स्कूल और संस्थान खोलने का विरोध सबके सामने आ भी जाएगा।