मप्र में उपचुनाव: उम्मीदवारों के कर्म से ही पार्टियों को मिलेंगी आह और वाह…

0
132

राघवेंद्र सिंह

एक जमाना था जब राजनीतिक दलों की प्रतिष्ठा का लाभ उम्मीदवारों को मिलता था लेकिन अब जमाना बदल गया है। उम्मीदवारों के चाल चलन उनके व्यवहार विश्वसनीयता और कर्मों का फल पार्टियों को भी भोगना पड़ता है। मध्य प्रदेश होने वाले 28 विधानसभा के उपचुनाव में जो हालात है उससे सियासी दल और उस के कर्ता-धर्ता खासे चिंतित हैं। कमलनाथ सरकार में मंत्री और विधायक रहे कांग्रेस के नेता अब भाजपा के बैनर तले चुनाव मैदान में उतर रहे हैं तो मतदाता उनके कामकाज के रिपोर्ट कार्ड पर ज्यादा ध्यान देते दिख रहे हैं । जो खबरें आ रही हैं उस हिसाब से उम्मीदवारों के 15 महीने की कमलनाथ सरकार में कार्यकर्ता और वोटर के प्रति जो व्यवहार था उस रिपोर्ट कार्ड का भुगतान उम्मीदवार के साथ पार्टी को भी करना पड़ेगा। वोटर और कार्यकर्ताओं के इस रुप से प्रत्याशी और पार्टी दोनों ही हैरान है। सरकार जाने के बाद कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है लेकिन भाजपा और खास तौर से ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा जरूर ज्यादा दांव पर लगी है। उप चुनाव की तारीख अभी घोषित नहीं हुई है लेकिन लग रहा है चुनाव प्रचार के साथ परिणाम भी दिलचस्प होंगे।

भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जननायक वाली छवि और युवा तुर्क के साथ भाजपा के स्टार लीडर बने ज्योतिरादित्य सिंधिया के मैजिक पर सबकी निगाहें रहेंगी। इन दोनों नेताओं को संगठन व संघ परिवार साथ मिलकर मैदानी मदद कर रहा है। ऐसा हम भाजपा की बदली रणनीति के चलते लिख रहे हैं पहले पार्टी होती थी और लीडर बाद में लेकिन पिछले कुछ वर्षों से लीडर पहले हैं और संगठन बाद में । इसी के चलते चुनाव लीडर के नाम पर लड़े जाने का रिवाज देखने को मिल रहा है। सबने देखा लोकसभा चुनाव भाजपा ने नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नाम को आगे रख कर लड़ा। हालांकि व्यक्तिवाद के रास्ते पर जाति दिख रही भाजपा में इस तरह के मुद्दे महत्वपूर्ण नहीं रहे हैं। इसीलिए संगठन के बजाय उम्मीदवार की छवि जनता और कार्यकर्ताओं में उसकी विश्वसनीयता का रिपोर्ट कार्ड चुनाव के नतीजे पर सर्वाधिक असर डालेगा। मालवा के सांवेर भोपाल के पास की सांची और बुंदेलखंड की सुरखी से लेकर ग्वालियर चंबल कि वे महत्वपूर्ण सीटें जहां सिंधिया राजपरिवार के नाम पर लोग चुनाव की वैतरणी पार कर जाते हैं अब वहां शुरुआत में सिम कुछ बदला-बदला सा है। 15 महीने की कमलनाथ सरकार में मंत्री और विधायक के कामकाज ही उन्हें जीत या हार के रास्ते पर पहुंचाएंगे।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और सिंधिया की युति 28 विधानसभा सीटों को जीतने के लिए दिनरात एक करते दिख रहे हैं जीत में उम्मीदवार का पिछला ट्रेक रिकार्ड सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण रोल अदा करेगा। जैसे क्रिकेट में कोच और कप्तान कितना भी खिलाड़ी को समझाएं असली में तो मैदान में जो खिलाड़ी करेगा उसी से उसका भविष्य टीम की जीत तय होगी। कुल मिलाकर उम्मीदवारों को अपने कर्मों के फल से पार्टी में उनका भविष्य तय होगा। कमजोर समझी जाने वाली कॉन्ग्रेस और उनके बुजुर्ग नेता कमलनाथ- दिग्विजय सिंह भाजपा को टक्कर देने की रणनीति में व्यस्त हैं। इसी के चलते सांवेर से भाजपा से कांग्रेस में आए प्रेमचन्द गुड्डू, ग्वालियर पूर्व से सतीश सिकरवार और सुरखी विधानसभा सीट से पारुल साहू को मैदान में उतारने का फैसला किया है। कांग्रेस की रणनीति से इन तीनों सीटों से सिंधिया के खासम खास तुलसी सिलावट,गोविंद सिंह राजपूत और डॉक्टर प्रभुराम चौधरी शुरुआत में ही कड़े मुकाबले में उलझते दिख रहे हैं। ये तीनों सीटें उपचुनाव की दशा दिशा और माहौल बनाने-बिगाड़ने के लिए अहम होगी। उपचुनाव की तिथि तय होने के बाद एकबार फिर विस्तार से चर्चा की जाएगी। लेकिन इतना तय है कि संगठन के कमजोर होने प्रतयाशी की छवि पर ही हार – जीत का दारोमदार ज्यादा होगा।

 

केंद्र में प्रदेश भाजपा का कद घटा

राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की टीम में मध्य प्रदेश कि नेताओं के नाम नहीं होने ने सबको चौका दिया।इस सबके लिए प्रदेश भाजपा की घटती संगठन क्षमता भी काफी हद तक जिम्मेदार है। मध्य प्रदेश से कैलाश विजयवर्गीय इकलौते नेता है जो महामंत्री के पद पर वापसी कर सके। विजयवर्गीय के अलावा तीन अन्य नेता जिनमें सांसद सुधीर गुप्ता उप कोषाध्यक्ष बनाए गए और लाल सिंह आर्य को अनुसूचित जाति मोर्चा का मुखिया बनाया गया। मंत्री के तौर ओम प्रकाश धुर्वे को टीम में शामिल किया गया है इसके विपरीत पूर्व में तीन उपाध्यक्ष के रूप में उमा भारती शिवराज सिंह चौहान और प्रभात झा शामिल थे। इसके अलावा प्रदेश भाजपा के प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे भी भाजपा की राष्ट्रीय टीम में शामिल नहीं है। इससे संकेत मिलते हैं कि भाजपा का प्रदेश संगठन पहले से न केवल कमजोर हुआ है बल्कि उसे मजबूत बनाने वाले प्रभारी भी अपनी भूमिका में सफल साबित नहीं हुए। इसका मतलब मध्य प्रदेश को आने वाले दिनों में नए प्रभारी के रूप में कोई नेता मिलेगा।