भारत भवन में तीन दिवसीय भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल का शुभारंभ

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TIO, BHOPAL

साहित्य कला के रंगो महक के बेमिसाल सिलसिलों का ताना-बाना अपने साथ लिए भोपाल साहित्य एवं कला महोत्सव का दूसरे संस्करण का उद्घाटन शुक्रवार को झीलों के शहर भोपाल स्थित भारत भवन में मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा किया गया। तीन दिवसीय महोत्सव के दौरान 56 ज्ञान सत्रों का आयोजन किया जाएगा। जिसमें लगभग 80 लेखक प्रतिष्ठित साहित्यकार और सार्वजनिक जीवन से जुड़े लोग संस्कृति, पर्यावरण, राजनीति, समकालीन मामलों, प्रबंधन, साहित्य के साथ इतिहास पर चर्चा करेंगे।

कार्यक्रम की शुरुआत कलापिनी कोमकली ने सरस्वती वंदना ‘या कुन्देन्दु तुषार हार धवला…” से की। इसके बाद उन्होंने दो शुभ मंगल रचनाओं को प्रस्तुत किया। अगली कड़ी में कार्यक्रम का उद्घाटन हुआ, सत्र के दौरान मंच पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ, संस्कृति मंत्री, विजयलक्ष्मी साधौ, पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश,जलपुरुष राजेन्द्र सिंह, लेखक एंटनी डी सा, अभिलाष खांडेकर, बीएलएफ के डायरेक्टर राघव चंद्रा औऱ सेक्रेटरी मीरा दास मौजूद रहे। राघव चंद्रा ने सभी का स्वागत करते हुए बीएलएफ की रूप रेखा बताई। वही कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री द्वाराएंटनी डी सा,द्वारा लिखित बुक का विमोचन किया। साथ ही देशदीप सक्सेना की पुस्तक “ब्रेथलेस” के साथ ही प्रमोद कपूर की पुस्तक “गांधी : एक सचित्र जीवनी” का विमोचन किया। इसके साथ ही विश्व विख्यात फोटोग्राफर राकेश और नरेश बेदी की वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी प्रदर्शनी का उद्घटान किया।

संस्कृति मंत्री डॉ साधौ ने हिंदी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए आज इंदिरा गांधी की बात इसीलिए करनी चाहिए क्योंकि भारत भवन की नींव उन्होंने ही रखी थी और इसे संस्कृति राजधानी का दर्जा दिलाया। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मंच से इस कार्यक्रम के लिए राघव चंद्रा को बधाई देते हुए कहा कि ऐसे ज्ञानवर्द्धक कार्यक्रम का आयोजन होते रहना चाहिए। अंत मे मीरा दास ने मंच से सभी अतिथियों का आभार प्रकट किया।

सुशीला देवी पुरस्कार से सम्मानित हुईं शिवांगी स्वरूप

उद्घाटन सत्र में रतनलाल फाउंडेशन और भोपाल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल की आयोजन कमेटी द्वारा 2018 में महिलाओं द्वारा लिखे सर्वश्रेष्ठ उपन्यास लैटिट्यूडस ऑफ लोंगिंग के लिए शुभांगी स्वरूप को सुशीला देवी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस दौरान उन्हें दो लाख की प्रोत्साहन राशि व प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया।

उपन्यास ‘लैटिट्यूडस ऑफ लोंगिंग’ मुख्य रूप से अंडमान एवं द्वीप में स्थापित ऐसी कथा है जो प्रकृति और मानव जीवन के बीच के अनूठे संबंधों के असली अहसासों को उजागर करती है। जिसे शुभांगी स्वरूप ने बहुत सुंदरता और परिष्कार के साथ अपने शब्दों में पिरोया है। हालांकि कथा अन्य परिदृश्यों जैसे म्यांमार और नेपाल में भी चलती है, जिससे उपन्यासकार की पर्यावरणीय मुद्दों पर दृढ़ पकड़, साहस और निरंतरता उजागर होती है। सुशीला देवी पुरस्कार के लिए प्रतिस्पर्धी किताबें ‘मिसिंग’- सुमाना रॉय, ‘द अनडूइंग डांस’-श्रीविद्या नटराजन, ‘द क्वीन ऑफ़ जैस्मिन कंट्री’- शरण्या मनिवान्नम और ‘बॉम्बे ब्राइड्स’-एस्तेर डेविड भी नामांकित की गई थीं। जिसमें से निर्णायक मंडल प्रोफेसर मालाश्री लाल, डॉ सुकृता पॉल कुमार और प्रोफेसर जी जे वी प्रसाद ने शुभांगी स्वरूप की ‘लैटिट्यूडस ऑफ लोंगिंग’ को सुशीला देवी पुरस्कार के लिए चयनित किया।

क्रियान्वयन में विश्वास रखती थी इंदिरा गांधी- जयराम रमेश

भोपाल साहित्य एवं कला महोत्सव भारतीय पर्यावरण में इंदिरा गांधी की भूमिका पर चर्चा करते हुए पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश यह मानते हैं कि इंदिरा गांधी योजनाओं के क्रियान्वयन में विश्वास रखती थी। उन्होंने बताया इंदिरा गांधी खुद को प्रकृति पुत्री मानती थी और बचपन से ही वह प्रकृति एवं पर्यावरण के बेहद करीब थी। जयराम रमेश अपनी किताब’ इंदिरा गांधी ए लाइफ इन नेचर’ के बारे में चर्चा करते हुए बताया की यह किताब इंदिरा गांधी द्वारा लिखें पर्यावरण संरक्षण के पत्रों की संजोती है जो उन्होंने अपने मुख्यमंत्रियों अपने अधिकारियों के नाम लिखे थे। यह किताब इंदिरा गांधी के पर्यावरणीय प्रेम पर आधारित है।इसके अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र ने जब 1972 में पर्यावरण पर पहली कांफ्रेंस आयोजित की थी तो इंदिरा गांधी विश्व की पहली प्रधानमंत्री थीं जिन्होंने पर्यावरण के ऊपर भाषण दिया था साथ ही पर्यावरण असंतुलन को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी। इस किताब के हवाले जयराम रमेश ने बताया कि 1971 में जब भारत पाकिस्तान से युद्ध की तैयारी कर रहा था तो उस समय इंदिरा गांधी ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के ड्राफ्ट के ऊपर 4 घंटे चर्चा की थी। इंदिरा गांधी पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ वन्य जीव संरक्षण को लेकर सजग थी। इसके अंतर्गत उन्होंने प्रोजेक्ट लायन और बर्ड सेंचुरी तथा बाघों की सुरक्षा पर खासा ध्यान दिया था। मध्य प्रदेश के तत्कालीन सीएम मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को पत्र लिखकर उन्होंने बाघों की सुरक्षा के लिए आदेशित भी किया था। वर्तमान समय में हो रहे पर्यावरणीय असंतुलन के लिए जयराम रमेश ने निजी एजेंसियों के साथ-साथ सरकारी एजेंसियों को भी जिम्मेदार मानते हैं। प्रकृति को बचाने के लिए उन्होंने युवाओं से अपील करते हुए कहा कि भारतीय सभ्यता में बहुत सी ऐसी परंपराएं हैं जो पर्यावरण बचाव के लिए उल्लेखित हैं, उन्हें हमे याद रख कर क्रियान्वयन पर जोर देना चाहिए। इस चर्चा में भारती चतुर्वेदी और सोसाइटी फॉर कल्चरल एनवायरमेंट के संस्थापक सदस्य अभिलाष खांडेकर मंच पर मौजूद रहे।

हमें पानी के अधिकार की बात करनी चाहिए- राजेन्द्र सिंह

‘कीमती पानी और दुर्लभ पानी’ पर चर्चा के लिए आमंत्रित जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि अब हमें पानी के अधिकार की बात करनी चाहिए। तकनीक और लोक ज्ञान के मिश्रण से नदियों को पुनर्जीवित एवं जल संरक्षण में तेजी से काम कर रहे हैं। राजस्थान गंगा बेसिन में 9 मरी हुई नदियों को पुनर्जीवित करने का काम किया इसके साथ 19 जिलों के ढाई लाख सूखे कुएं में फिर से जान डाल दी और साथ ही में 11800 एमबी बनाएं इनका मानना है कि सूरज बहुत निर्दयी है, और उसकी टेढ़ी नजर हमारे पानी पर है। इस चर्चा के दौरान राजेंद्र सिंह में पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से जल संरक्षण के गुर भी सिखाए। इनका मानना है कि भारत एक अद्भुत देश है और अगर इसे और समृद्ध बनाना है तो हमें अपने संसाधनों की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए। इस बातचीत के दौरान राजेंद्र सिंह के साथ संजय शुक्ला ने भी मंच साझा किया। जिन्होंने कहा यह अगर हम पानी की कद्र करते हैं तो उसके मूल्य में भी वह परिलक्षित होना चाहिए।

मोहनदास टू महात्मा : लाइफ एंड स्ट्रगल आफ गांधी

वागार्थ में मोहनदास टू महात्मा पर चर्चा हुई जिसमें प्रमोद कपूर ने सभी के बीच अपनी पुस्तक एन इलस्ट्रेटेड बायोग्राफी के कुछ अंश बताये उन्होंने कहा कि बंटवारे के समय महात्मा गांधी ने कहा था कि आज मेरे कहने में वह शक्ति नहीं रही, जो पहले हुआ करती थी। अगर मेरे कहने में पहले जैसा प्रभाव होता, तो आज देश का एक भी नागरिक भारत को छोड़कर जाने की जरूरत नहीं समझता यहां जो कुछ हो रहा है उसे सुनकर मेरा दिल भर जाता है। चारों ओर आगजनी, लूटपाट, कत्लेआम, जबरदस्ती, धर्मपरिवर्तन, मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों को तोड़ना, यह सब कुछ केवल पागलपन है, इसे रोका नहीं गया तो सभी जातियों का सर्वनाश हो जाएगा। भारत में एक समय आएगा, जब सारी नफरत जमीन में दफना दी जाएगी और फिर अमन-चैन से सभी समाज रह सकेंगे। वहीं उन्होंने चंपारण, खादी ओर छुआछूत जैसे कई मुद्दों पर चर्चा की। एक किस्सा बताते हुए कहा कि उन्हें एक बार सर्दी जुकाम हुआ था, उन्हें अंग्रेजी दवा दी गई तो उन्होंने खाने से मना किया और कहा मैं देसी दवा खा सकता हूं लेकिन अंग्रेजी दवा तो कभी नहीं, इस चर्चा के दौरान मंच पर शरद चंद्र बेहर मौजूद रहे साथ मे उन्होंने उनकी पुस्तक से जुड़े कई प्रश्न पूछे ।

हिंदू माइथोलॉजी एंड डूम्ज़डे : उषा नारायण इन कन्वरसेशन विद सीमा रायजादा

अभिरंग के पहले सत्र में हिन्दू पौराणिकता पर बात करते हुए उषा नारायणन ने कहा कि जिस वर्ल्ड को महिला चला रही होंगी उस वर्ल्ड मे कभी “वर्ल्ड वॉर” नही सकती, इतिहास में भी यही हुआ है लेकिन आज महिलाएं कठिन से कठिन काम भी आसानी से कर रही हैं। वही फ़िल्म इंडस्ट्री के ‘मी टू’ कैंपेन के बारे में बात करते हुए उषा ने कहा कि ये कैंपेन महिलाओं के प्रति सजगता पैदा करता है, इस मुद्दे को उठाये जाने से कहीं न कहीं महिलाएं सशक्त हो रही हैं। हिन्दू पौराणिकता पर उषा ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने जीव-जंतु मानव सबसे प्रेम किया और सबने उनसे प्रेम किया। भगवान श्रीकृष्ण में देवता दिखाई देते हैं। युग कोई सा भी हो अपने आपको साबित करना होगा, हर इंसान हर देवता अपने आपको साबित करेगा। मेरी किताब ‘प्रद्युम्न : सन ऑफ कृष्ण’ भी यही बताती है कि कलयुग में प्रद्युम्न को भी अपने आपको साबित करना होगा और बुराई को हराकर सत्य पर विजय प्राप्त करनी होगी। वहीं पौराणिक चरित्र को रखते हुए “मी टू कैंपेन” समाज मे हो रही घटनाओं, महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, समाज मे फैल रही बुराइयों के बारे में भी बताया। इस चर्चा के दौरान मंच पर बतौर मॉडरेटर सीमा रायजादा मौजूद रहीं।

योजनाबद्ध प्रबंधन के अभाव में हो रहा है पर्यावरण पतन- भारती चतुर्वेदी

भोपाल साहित्य एवं कला महोत्सव के समानांतर सत्रों के दौरान भारत में बढ़ रहे पर्यावरण पतन पर भी चर्चा की गई। इस दौरान बहुचर्चित पर्यावरणविद सामाजिक कार्यकर्ता और चिंतन नामक एनजीओ की अध्यक्ष भारती चतुर्वेदी ने माना की पर्यावरण एवं वन्य जीवो से हो रही छेड़छाड़ पर्यावरण पतन का सबसे बड़ा कारण है। इसके साथ ही योजनाबद्ध प्रबंधन का अभाव भी पर्यावरण पतन को तेजी से आगे बढ़ा रहा है। इस बातचीत में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष एसपीएस परिहार ने कहा ने कहा कि हम पर्यावरण असन्तुलन की पहचान कर उसे ठीक करने के लिए प्रयासरत हैं। जिसकी शुरुआत हमने दिल्ली में 2016 से की है। उन्होंने माना खराब आर्थिक विकास की योजनाएं भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है। हमने अपने कार्यप्रणाली पर विस्तार करते हुए भूटान से कचरा प्रबंधन के लिए समझौता किया है। टाउन प्लानिंग जैसी परियोजनाओं को पर्यावरण प्रबंधन में अवरोध मानते हुए भारती कहती हैं कि यहां शहरीकरण के नाम पर रियल स्टेट के टुकड़ों में शहर बसाया जा रहे हैं और वही झोपड़ पट्टियों के पास मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं है। भोपाल साहित्य एवं कला महोत्सव के अध्यक्ष राघव चंद्रा ने कहा कि आज अगर हम पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं तो हम अपने अगली पीढ़ी के अधिकारों का हनन कर रहे हैं और उनकी अहमियत नहीं समझ रहे हैं। सोसायटी फ़ॉर कल्चर एन्ड एनवायरमेंट के फाउंडर मेंबर अभिलाष खांडेकर ने मोमेंटो प्रदान कर मंचासीन अतिथियों को सम्मानित किया

ट्राइब्स एस लिविंग ब्रिजेस

समानांतर सत्रों की श्रृंखला में, डॉ एराच भरूचा ने जनजातियों के बारे में बात की| भरूचा का सत्र उनकी किताब लिविंग ब्रिजेस और चेंजिंग लैंडस्केप के इर्द गिर्द रहा जहां उन्होंने आदिवासियों के बारे में अपने अनुभव बताए। उन्होंने कहा कि आदिवासी प्रकृति से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं साथ ही वह एक दुसरे से, जंगलों से और जीवनी से भी से भी जुड़े हुए हैं। इसके बाद भरूचा ने भारत के उन आदिवासियों के बारे में बात की, जहाँ वे शिक्षा के अभाव में रह रहे हैं। भरूचा ने झारखंड के उदाहरण के साथ अपना दृष्टिकोण समझाया जहां केवल एक शिक्षक पूरे स्कूल को चला रहा है। भरूचा ने भारत की सांस्कृतिक विविधता के साथ भारत के विभिन्न राज्यों के नृत्य और चित्रों के उदाहरण भी बताए।

मिशन मंगल : मिनी वैद

दोज़ मैग्निफिशियंट वूमन एंड देयर फ्लाइंग मशीन विषय के साथ लेखक मिनी वैद का सत्र आयोजित किया गया| यह सत्र मिशन मंगल की अगुवाई करने वाली महिला वैज्ञानिकों के ऊपर आधारित रहा। मिनी वैद ने अपने सत्र की शुरुआत यह समझाते हुए की, क्यों उन्होंने इस विषय को लिखने के लिए चुना। वैद ने बताया की महिला वैज्ञानिकों का जीवन चुनौतियाँ से भरपूर है। जहाँ एक ओर वे अंतरिक्ष में रॉकेट भेज रही हैं और दूसरी ओर वे अपने परिवार की देखभाल भी कर रही हैं। इस दौरान वैद ने उन कठिनाइयों के बारे में बात की, जो पुस्तक को लिखते समय आईं। जैसे विज्ञान को सामान्य श्रोताओं के लिए पठनीय बनाना। क्योंकि यह बहुत से लोगों के लिए दिलचस्पी का हिस्सा नहीं है लेकिन किसी तरह वैद ने अपने प्रयासों और शोध के बाद इसे लिखने में सफलता हासिल की|

स्वतंत्रता सेनानियों पर पढ़ना अधिक पसंद नहीं करते लोग- अनुज धर

” सुभाष चंद्र बोस- स्प्रिंगिंग टाइगर टू साइलेंट सेंटहुड ” विषय पर परिचर्चा में लेखक अनुज धर ने ब्रिग. संजय अग्रवाल से बातचीत में अपनी पुस्तक ” कांउण्ड्रम – सुभास बोस’स लाइफ आफ्टर डेथ” के माध्यम से सुभाष चंद्र बोस से जुड़े कई पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि अधिकतर इतिहासकार इस विषय पर चर्चा ही नहीं करते। उन्होंने कहा कि पश्चिम में “गाँधी ब्रांड ” वहा बहुत अधिक प्रचलित है लेकिन सुभाष एक ब्रांड के तौर पर अपनी जगह नहीं बना पाए. उन्होंने बताया कि बोस ने बहुत कुछ ऐसा किया है जिसके विषय में शायद कोई भी याद नहीं करता जैसे उन्होंने एक महिला ब्रिगेड तैयार की थी जो कि महिला सशक्तिकरण में एक बहुत बड़ा कदम था। साथ ही आज का योजना आयोग भी सुभाष बोस का ही र्दष्टिकोण है। कुछ सवालों के जवाब देते हुए उन्होंने नेताजी के जीवन कि घटनाओं का एक सही क्रम भी बताया। उन्होंने कहा कि जेम्स बांड और बोस कि तुलना की जाती है लेकिन जेम्स बांड की उत्पत्ति का सही कारण भारतीय ही हैं क्योंकि हम एक बहुत कुशल जासूस होते हैं।

बिजनेस सूत्र : जैसा विश्वास, वैसा व्यवहार और वैसा ही व्यापार

प्रसिद्ध पौराणिक कथायों के लेखक देवदत्त पट्टनायक ने अभिरंग का मंच संभाला जहाँ उन्होंने अपनी लोकप्रिय पुस्तक बिजनेस सूत्र के प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा की। पट्टनायक ने अपनी पुस्तक की मुख्य हिस्से के बारे में बताया जिसमें कहा गया है कि आप जैसे विश्वास करते हैं यह आपके व्यवहार को जताता है और आपका व्यवहार आपके व्यापार को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि विभिन्न देशों में अलग-अलग विश्वास और अलग-अलग व्यवहार हैं इसलिए व्यापार का अलग-अलग होना भी इसी का कारण है|इंस्टिट्यूशनल स्ट्रक्चर के बारे में पूछे जाने पर, पट्टनायक ने कहा, पश्चिमी देशों ने संगठनात्मक संरचना शानदार है, जिसमें नीति और प्रणाली शामिल है, जहां एक निर्धारित समय के बाद सेवानिवृत्ति का समय है और खुद को पीछे रख बाकियों को काम देने की मानसिकता है। इसका उल्लेख रामायण में भी हुआ जब दशरथ ने राम का विवाह करने के बाद अपना सिंहासन छोड़ दिया।