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इंदौर कीर्ति राणा
कोरोना योद्धा ने जो दर्द सहा
वह मरीज के लिए बन रहा दवा
यदि आप कोरोना संक्रमित होने के बाद लड़ाई में विजयी योद्धा साबित हो चुके हैं तो इस महामारी से जूझ रहे मरीजों के लिए आप जीवनदाता भी बन सकते हैं।शायर अलीम अख्तर की गजल ‘दर्द बढ़कर दवा न हो जाए’ की तर्ज पर ठीक हुए कोविड पेशेंट के रक्त से लिया गया प्लाजमा दूसरे कोविड पेशेंट को रोगमुक्त करने में मददगार साबित हो रहा है।कोरोना से स्वस्थ हुए मरीजों में से 10 कोरोना योद्धाओं ने एमवायएच के ब्लड बैंक में प्लाजमा डोनेट किया है और इस प्लाजमा थैरेपी से 3 मरीज स्वस्थ भी हो चुके हैं।स्वस्थ हुए कोरोना योद्धा के शरीर से डेढ़ घंटे की अवधि में तीन चरणों में कुल 900 एमएल खून से करीब 400 एमएल प्लाजमा निकालने के बाद खून वापस मरीज को चढ़ा दिया जाता है।
चार एफेरेसिस मशीन सिर्फ एमजीएम कॉलेज में
प्लाजमा थैरेपी में खून से प्लाजमा निकालने की प्रक्रिया बोलचाल की भाषा में कहें तो एक तरह से खून से क्रीम कलर का प्लाजमा छानना है।कोरोना योद्धा-पत्रकार देव कुंडल ने मंगलवार को प्लाजमा डोनेट किया है। एक साथ 4 एफेरेसिस मशीन की उपलब्धता वाला एमजीएम मेडिकल कॉलेज प्रदेश का एकमात्र कॉलेज है।डीन डॉ ज्योति बिंदल के मुताबिक अब तक 10 कोरोना योद्धा ने प्लाजमा डोनेट किया है जिसमें से एमटीएच में दाखिल 2 और अरबिंदो में दाखिल एक मरीज को प्लाजमा चढ़ाया जा चुका है।दो मरीजों की हालत पहले से बेहतर है। बाकी प्लाजमा स्टोर कर रखा है।
एमवायएच के ब्लड बैंक इंचार्ज और प्रोफेसर ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन डॉ अशोक यादव ने प्रजातंत्र से चर्चा में बताया प्लाजमा थैरेपी के लिए वही मरीज प्लाजमा डोनेट कर सकता है जो इस महामारी में पूरी तरह ठीक हो चुका है।जिन 10 लोगों ने डोनेट किया है उनमें AB+वाले देव कुंडल पहले डोनर हैं। इस ग्रुप का प्लाजमा ए, बी और एबी ग्रुप वाले मरीज को चढ़ाया जा सकता है। इसी तरह ओ ग्रुप वाले डोनर के प्लाजमा के साथ आरबीसी सेल भी उपयोग में लिए जा सकते हैं।ये सारी प्रक्रिया आईसीएमआर के मानक मुताबिक ही की जाती है।
वापस चढ़ा दिया जाता है खून
कोरोना प्रभावित मरीज के लिए अधिकतम 400 एमएल प्लाजमा जरूरी होता है।डॉ यादव के मुताबिक डोनेट करने वाले के 300एमएल ब्लड से सिंगल निडिल वाली एफेरेसिस मशीन 150 एमएल प्लाजमा निकाल कर वापस ब्लड मरीज को चढ़ा देती है। यह प्रक्रिया तीन चरण में सम्पन्न होती है।एकत्र किए प्लाजमा को एक साल तक माइनस 40 से 80 डिग्री तापमान में सुरक्षित रखा जा सकता है।कोरोना योद्धा प्रतिभा कुंडल भी प्लाजमा डोनेट करने का मन बना कर आई थीं लेकिन हिमोग्लोबिन कम होने से वे डोनेट करने के उपयुक्त नहीं पाई गईं।यदि शुगर, हिमोग्लोबिन कम है तो ऐसे डोनर का प्लाजमा नहीं लिया जा सकता।सामान्य रक्तदाता जब ब्लड डोनेट करते हैं तो उस रक्त में से प्लाजमा बोनमेरो, प्लेटलेट कलेक्ट कर लिया जाता है जो इच्छित मरीजों के काम में लिया जाता है।