बॉलीवुड और राजनीति में खूब चला विनोद खन्ना का सिक्का

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शशी कुमार केसवानी

विनोद खन्ना एक भारतीय अभिनेता और राजनेता थे। कई बेहतरीन फिल्मों में काम करने के बाद जब उन्होंने राजनीति की ओर रुख किया तो वे वर्ष 1997 और 1999 में वे दो बार पंजाब के गुरदासपुर क्षेत्र से भाजपा की ओर से सांसद चुने गए। 2002 में वे संस्कृति और पर्यटन के केन्द्रीय मंत्री भी रहे। और बाद में वे भारत के विदेश राज्य मंत्री भी बने। विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर 1946 को पेशावर पाकिस्तान में हुआ था। वहां उनके पिता का टेक्सटाइल, डाई और केमिकल का बिजनेस था। विनोद खन्ना पांच भाई बहनों ( 2 भाई, 3 बहनें) में से एक हैं। उनका परिवार अगले साल 1947 में हुए विभाजन के बाद पेशावर से मुंबई आ गया था। उनके माता-पिता का नाम कमला और किशनचंद खन्ना था।

विनोद बचपन में बेहद शर्मीले थे, स्कूल के दौरान उन्हें एक टीचर ने जबरदस्ती नाटक में उतार दिया और उन्हें अभिनय की कला पसंद आई। अभिनेता राहुल खन्ना और अक्षय खन्ना विनोद के बेटे हैं। विनोद ने अपनी दो शादियां की थीं। उन्होंने अपने फिल्मी सफर की शुरूआत 1968 मे आई फिल्म “मन का मीत” से की जिसमें उन्होंने एक खलनायक का अभिनय किया था। कई फिल्मों में उल्लेखनीय सहायक और खलनायक के किरदार निभाने के बाद 1971 में उनकी पहली सोलो हीरो वाली फिल्म हम तुम और वो आई। गुलजार द्वारा निर्देशित ‘मेरे अपने’ (1971) से विनोद खन्ना को चर्चा मिली और बतौर नायक वे नजर आने लगे। कुछ वर्ष के फिल्मी सन्यास, जिसके दौरान वे आचार्य रजनीश के अनुयायी बन गए थे, के बाद उन्होने अपनी दूसरी फिल्मी पारी भी सफलतापूर्वक खेली कहा जाता है कि वह अपने दौर के सफलतम अभिनेताओं में से एक थे लेकिन जब उनका करियर पीक पर था तभी उन्होंने फिल्मों से दूरियां बनानी शुरू कर दीं। और ओशो रजनीश के सरण में चले गए यही और जब तक लौटे तो फिल्मों का दूसरा दौर शुरू हो चुका था।

ये बात है सन 1970 से लेकर 1973 तक की है। मेरा गांव मेरा देश व कच्चे धागे फिल्म की शूटिंग उदयपुर राजस्थान में चल रही थी। तब मेरी दीवानगी धर्मेंद्र के लिए कुछ ज्यादा ही थी। पर वहां पर विनोद खन्ना को देखने के बाद महसूस हुआ कि सचमुच में कोई व्यक्ति इतना हैंडसम भी हो सकता है। बस उसी दिन से विनोद खन्ना के लिए दीवानगी सर चढ़कर बोलने लगी। लेकिन धर्मेंद्र के प्रति चाहत कम भी नहीं हुई। उदयपुर में शूटिंग के दौरान मैं अपने मोसेरे भाई दिलीप कालरा (बाबू) के साथ रोज सेट पर लड़ते- झगड़ते पहुंच ही जाता था। उन दिनों में कुल्फी के ठेलों पर धर्मेंद्र और विनोद खन्ना के खूब फोटो लगे रहते थे और नीचे ठेले वाले का नाम लिखा रहता है जैसे जय हिन्द कुल्फी लॉरी…उन ठेले वालों से फोटो खरीदकर के खूब एकत्रित करते थे। लेकिन आजकल जमाना बदल गया है। उसके बाद कई बार उन्हें मुंबई में देखा फिर विनोद खन्ना अंतिम बार भोपाल 2012 में आए थे। जब भोपाल में फिल्म गली-गली में चोर है कि शूटिंग चल रही थी तब उनके पुत्र अक्षय खन्ना की तबीयत बिगड़ गई थी। विशेष विमान से आकर अक्षय खन्ना को अपने साथ लेकर मुंबई चले गए थे। तब एयरपोर्ट पर मुलाकात हुई थी। पर उनके चेहरे की चमक वैसी ही बरकरार थी और याददाश्त भी गजब की थी।

माली का भी किया काम
विनोद ने खुलासा किया था कि वह ओशो के रजनीशपुरम में एक माली था, वह शहर जो उन्होंने अमेरिका में बनाया था और उनके साथ चार साल तक रहे। उन्होंने एक साक्षात्कार में खुलासा किया था, ‘मैं उनका माली था, मैंने शौचालय की सफाई की, मैंने बर्तन साफ किए और उनके कपड़े भी पहने क्योंकि हम शारीरिक रूप से एक ही कद के थे।’ जब अभिनेता भारत लौटे और अपना आध्यात्मिक ब्रेक समाप्त किया, तो उन्हें पुणे में ओशो के आश्रम को चलाने का आॅफर मिला। इस बारे में उन्होंने बताया था, ‘मैं बॉलीवुड में वापस चला गया। फिल्मों में वापसी करना आसान था। मैंने अमेरिका में अपने गुरु को छोड़ दिया, जो मेरे लिए लगभग असंभव-सा निर्णय था, मैं ओशो से जुड़ा था। उन्होंने मुझसे पुणे आश्रम को चलाने के लिए कहा, लेकिन मैंने मना कर दिया। यह मेरे जीवन का कहा गया सबसे कठिन ना था।’ वह लोकप्रिय रूप से “अपनी मर्सिडीज बेचने वाले भिक्षु” के तौर पर प्रसिद्ध थे। वह अपने एक अन्य नाम स्वामी विनोद भारती से भी जाने जाते थे। ये नाम उनके आध्यात्मिक यात्रा शुरू करने के बाद पड़ा।

माली का भी किया काम
उन्होंने अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र जैसे बड़े सितारों के साथ बॉलीवुड में स्टारडम पाने से पहले एक ‘डकैत’ के रूप में प्रसिद्धि पाई थी। उन्होंने एक विलेन के रूप में सुनील दत्त की 1968 की फिल्म, मन का मीत से डेब्यू किया था।

विनोद खन्ना को उनके अभिनय के लिए कई बड़े अवार्ड्स हासिल हुए। यहाँ पर इन अवार्डस के विषय में दिया जा रहा है। साल 1975 में फिल्म हाथ की सफाई के लिए फिल्मफेयर अवार्ड बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए मिला।

साल 1999 में फिल्मफेयर अवार्ड में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। साल 2001 कलाकार अवार्ड की तरफ से लाइफटाइम अचिवेमेंट अवार्ड दिया गया। साल 2005 में स्टारडस्ट अवार्ड की तरफ से रोल मॉडल आॅफ द इयर अवार्ड दिया गया। साल 2007 में जी सिने अवार्ड की तरफ से लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। इस तरह विनोद खन्ना भारतीय सिनेमा के रास्ते में एक तरह से मील के पत्थर के रूप में स्थापित हो गये हैं। युवा अभिनेता इनकी फिल्मों से बहुत कुछ सीख रहे हैं। विनोद खन्ना ने अपने जीवन में राजनीति भी की, किन्तु किसी तरह के राजनैतिक विवाद में इनका नाम नहीं आया। अर्थात राजनीति में भी इन्होंने कला की ही तरह ईमानदारी बरती। फिल्मों में उनके बेहतरीन अभिनय के लिये दादा साहेब पुरस्कार एवं फिल्म फेयर का पुरस्कार भी दिया जा चुका है।

विनोद अपने अंतिम समय में कैंसर से जूझ रहे थे। इन्हें सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में भर्ती कराया गया था। साल 2017 के आरम्भ में हालांकि इनके स्वस्थ होने की खबर आई थी, किन्तु बीमारी लगातार बढती गई। अपने अस्वस्थता के समय इनके पास इनका पूरा परिवार मौजूद था। अंतत: 27 अप्रैल 2017 को इनका देहांत हो गया

विनोद खन्ना की कॉलेज से शुरू हुई लव स्टोरी
विनोद खन्ना की स्कूली पढ़ाई दिल्ली और मुंबई में हुई। वे साइंस के स्टूडेंट थे और इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन पढ़ाई पूरी करने के बाद वो घर के बिजनेस में लग गए। अगर निजी जिंदगी के बारे में बात करें तो विनोद खन्ना की लव स्टोरी कॉलेज में शुरू हुई। गीतांजलि से उनकी पहली मुलाकात वहीं पर हुई थी और वो उनकी पहली पत्नी भी बनीं। लेकिन कुछ वक्त बाद दोनों का तलाक हो गया। 1990 में विनोद खन्ना ने कविता से शादी कर ली। जिससे उनके एक बेटा साक्षी और बेटी श्रद्धा हुए। राहुल विनोद खन्ना की पहली पत्नी गीतांजलि के बेटे हैं। राहुल खन्ना भी एक अभिनेता के तौर पर फिल्मों में काम करते हैं। अक्षय खन्ना विनोद खन्ना और गीतांजलि के दूसरे बेटे है। अक्षय खन्ना भी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं।