राघवेंद्र सिंह
बा-खबर
इन दिनों देश भर खासतौर से उत्तर भारत लू की चपेट में है। सूरज से अंगारे बरस रहे हैं। 45-46 डिग्री तापमान के बीच लोग घरों में बैठे हैं। प्रकृति ने एक किस्म का कर्फ्यू सा लगा दिया है। ऐसे में धान और सोयाबीन के लिए खेत तैयार करने के लिए किसान दिन रात जुटा हुआ है। मध्यप्रदेश दूसरे राज्यों की तुलना में कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था पर ज्यादा निर्भर करता है।
कस्बे से लेकर शहरों तक एसी आफिसों और बड़े शोरूम में बैठने वाले शायद तापमान की खबर सुनकर ही लू का शिकार हो जाएं। इस तरह के लोग किसानों की दिक्कत को शायद न समझें, मगर उनके नाम पर सत्ता में आने वाले दल और नेता उसकी अनदेखी करेंगे तो किसान उन्हें दुआ तो नहीं देगा। इसके लिए तुलसी दास और कबीर के नाम से एक दोहा चलन में है-
तुलसी हाय गरीब की कबहू न निसफल जाए,
बिना सांस के चाम से लोह भस्म हो जाए।
Who will destroy the farmers’ hi …, the young man and the farmer sad, how can the country be happy?
इसका जिक्र करना इसलिए भी मुनासिब है क्योंकि एक जून से दस जून तक देश भर में किसान अनोखा आंदोलन करने जा रहा है जिसमें वह न तो कोई चीज खरीदने शहर आएगा और न ही फल,सब्जी समेत कृषि उत्पाद बेचेगा। ये उसके देशव्यापी आंदोलन का हिस्सा है। मोटे तौर पर दुखी किसान की एक मांग सभी सरकारों से रही है कि उसे अपनी फसल का लागत मूल्य में पचास फीसदी राशि जोड़कर मिलना चाहिए। यह आंदोलन आत्महत्या कर रहे उन किसानों का है जो देश को रोटी दे रहे हैं।
तात्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का नारा था जय जवान,जय किसान। जवान सीमा पर रक्षा नहीं करेगा तो देश सुरक्षित नहीं रहेगा। अगर अन्नदाता गेहूं चावल फल सब्जी और दूध का उत्पादन नहीं करेगा तो देश क्या खाएगा। कहां बचेगा फिर देश।भाजपा ने उत्पादन लागत के साथ पचास फीसदी मूल्य जोड़कर बाजार भाव तय करने का वायदा किया था। इस वादे पर विश्वास कर किसानों ने राज्य से लेकर दिल्ली तक भाजपा को सत्ता में बैठाया। मगर हालात बदले नहीं औ? इस कदर बिगड़े कि कृषि कर्मण पुरस्कार पाने वाले मध्यप्रदेश में 15 वर्षों में 56 हजार के लगभग किसान आत्महत्या कर चुके हैं। जबकि सरकारें बनाने वाले दल अपने वादे पूरे नहीं कर पाए।
कुल मिलाकर किसानों की नाराजगी ने गुजरात में भी भाजपा को नुकसान पहुंचाया था। ऐसा ही असंतोष उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों में है। जब 2003 में उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी थी तब उन्होंने कृषि औ? ग्रामीण आधारित अर्थ व्यवस्था पर जोर दिया था। लेकिन वे कम समय सरकार में टिकीं औ? चली गईँ औ? उनके जाने के साथ यह योजना दफन हो गई। तात्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने गांव में दूध पालन पर जोर दिया था। बीजेपी किसान औ? मध्यम वर्ग से दूर होकर कर्मचारी औ? उद्योग पर फोकस किए हुए है। जबकि मानसून के कमजोर होने के अनुमान मात्र से शेयर मार्केट आटोमोबाईल औ? सराफा से लेकर कपड़ा बाजार तक धड़ाम से गिरता है। ऐसे में जब किसान ही मर रहा है तो बाजार औ? देश किस गणित से मुस्करा सकता है।
किसान सबसे बेईमान जात : भाजपा नेता
एक जून से किसानों के आंदोलन पर मालवा के एक भाजपा नेता ने किसानों को गाली देने के मामले में सारी हदें पार कर दीं। भाजपा किसान मोर्चा के महामंत्री हाकम सिंह अंजाना ने कहा- किसान सबसे बेईमान जात हो गई है आज की कंडीशन में । किसानों के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जो किया वह आज तक किसी ने नहीं किया। किसान लहसुन में चोरी कर रहा है। सरकार आठ सौ रुपए क्विंटल लहसुन में दे रही है। जिस किसान ने लहसुन नहीं बोया है वह भी दो रुपए व्यापारी को देकर छह रुपए खुद ले रहा है। किसान जात चोर है। बदमाश हैं साले। किसानों को जूते मारने चाहिए। जूते खाने लायक हैं किसान।
किसान कभी नहीं सुधरेंगे। किसानों को हराम का चाहिए बहुत हरामी हैं ये किसान। हालांकि इसके बाद भाजपा ने इन बहादुर नेताजी को पार्टी से बाहर कर दिया है। कुल मिलाकर किसानों के बारे में ये राय पार्टी की भले ही न हो लेकिन चुनावी साल में शिवराज सिंह के प्रयासों पर पानी फेरने वाली है। अब ऐसे लोग भाजपा में हैं तो उसे कांग्रेस या दुश्मनों की क्या जरूरत है। हो सकता है ये महाशय अपनी सरकार और संगठन से नाराज हों और उसे निपटाने के लिए ये बयान दे डाला।बहरहाल चुनाव में सरकार और संगठन से दुखी नेता बगावत करने की बजाए हाकम सिंह अंजाना की लाईन ले सकते हैं।
सक्रिय हैं दिग्विजय और तोमर
चुनाव के चलते मध्यप्रदेश की राजनीति में दो बदलाव दिख रहे हैं। एक तो दोनों पार्टियों ने अपने अध्यक्ष बदले और दूसरे समन्वय के लिए दो अनुभवी नेताओं को कमान सौंपी।भाजपा में वरिष्ठ नेता नरेन्द्र सिंह तोमर और कांग्रेस में तालमेल के मोर्च पर लगाया दिग्विजय सिंह को। नाराज लोगों को मनाने में इन दोनों ही नेताओं को महारथ है। जिस तरह कमलनाथ दिग्विजय सिंह के बिना अपनी टीम को पूरा नहीं मानते वैसे ही शिवराज सिंह चौहान नरेन्द्र सिंह तोमर के बिना अधूरे से लगते हैं।
चुनाव जरूर कांग्रेस और भाजपा के बीच होंगे मगर असली जोर आजमाईश दिग्विजय सिंह और नरेन्द्र सिंह के बीच होगी। संगठन के उस्ताद माने जाने वाले शिवराज सिंह मुख्मंत्री बनने के बाद कार्यकतार्ओँ के बीच पहले जैसी पकड़ नहीं बना पा रहे हैं। वजह है वे कार्यकतार्ओँ को सरकार में उनकी इच्छा के मुताबिक हिस्सेदार नहीं बना पाए।
लेखक IND 24 24 के समूह प्रबंध सम्पादक हैं।)