ग्यारह को ग्यारह बजे किसके बारह बजेंगें…

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ब्रजेश राजपूत

बहुत दिनों के बाद उनका फोन आया। नाम देख मैं चौंका। पहले गाहे बगाहे फोन करते थे मगर पूरे चुनाव के दौरान मुझे भुलाये रखा और राजस्थान चुनाव की वोटिंग खत्म होने के अगले दिन दोपहर को फोन किया जिस दिन शाम को एक्जिट पोल यानिकि मतदान बाद होने वाले सर्वे के नतीजे आने थे। बडा कातर सा स्वर था यार अब बर्दाश्त नहीं हो रहा। मैंने कहा क्या तो बोले बता दो क्या है नतीजे कौन बना रहा है एमपी में सरकार। मुझे मालुम है शाम को एक्जिट पोल दिखाओगे मगर रहा नहीं जा रहा। मैंने हंसकर कहा जैसे इतने दिन धीरज रखा कुछ घंटे और मगर हां सरकार तो उसी पार्टी की बन रही है जिसको आपने वोट किया है। अच्छा ऐसा क्या तब ठीक है ये कहकर उन्होंने फोन काटा।

इधर चैनल पर एक्जिट पोल चल रहे थे उधर फोन बजा। विदिशा से फोन था बहुत पुराने मित्र थे पिछली बातचीत कुछ साल पहले हुयी थी। भाई साब पिताजी बात करना चाहते हैं अरे क्यों बस आज आपको सुबह से याद कर रहे हैं अभी आपके चैनल पर एक्जिट पोल चला तो कहा बात कराओ। थोडी देर बाद दूसरी तरफ से आवाज आयी बेटा ये सब सच बता रहे हो क्या। मैंने पूछा क्या अरे ये सरकार आ रही है या जा रही है। मैंने कहा नहीं ये तो सर्वे हैं। कभी सच होते हैं कभी गलत तो कभी सही गलत के बीच का परिणाम आता है। अरे नहीं हमें तो ये सब सर्वे सच लग रहा है। इसके बाद उनके बेटे ने फोन लेकर बताया कि पिताजी पिछले कुछ महीनों से बिस्तर पर हैं, बेहद बीमार है मगर एक्जिट पोल के लिये सुबह से ही इंतजार कर रहे थे। जब उनको लगा कि उनकी बात सही हो रही है तो आपसे फोन कर कन्फर्म कर लिया सुबह से तनाव में थे मगर अब उनके चेहरे पर राहत है।

मगर एक्जिट पोल ने राहत तो दोनों दलों को दी है ओर चैन भी दोनों का ही छीना है। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों को लेकर मेरे पास करीब दस मतदान बाद होने वाले सर्वे के आंकडे हैं जिनमें से सात में बदलाव की हवा दिख रही है। इन सर्वे में एमपी में कांगे्रस की सरकार आते और बीजेपी की सरकार जाते हुये का दावा किया जा रहा है। मगर कांग्रेस की जो बढत दिखायी जा रही है वो पिछले चुनाव की बीजेपी जैसी बढत नहीं बल्कि बहुत कम अंतर से कांग्रेस आगे जाती दिख रही है। ये कम अंतर को बीजेपी के लोगों का दावा है था कि ये अंतर असल नतीजे आयेंगे तो दूर हो जायेगा तो कांग्रेसियों का तर्क है कि असल नतीजे इस अंतर को बढा देंगे। यानिकी नतीजों को अपने अपने पक्ष में करने के तर्क।

तकरीबन सारे चैनलों पर मतदान बाद सर्वे चलने के बाद से कौन जीत रहा है या क्या होने जा रहा है टाइप के सवाल करने वाले अब शांति धारण किये हुये हैं। वोट देने के सात दिन बाद उनकी चरम पर पहुंची जिज्ञासा को कुछ हद तक सर्वे ने शांत कर दिया है और यही इन सर्वे का मकसद भी है। द पालिटिक्स डाट इन नामका पालिटिकल स्टार्ट अप चलाने वाले इंदौर के विकास जैन कहते हैं कि वोट करने के बाद मतदाता ने किसे वोट किया इसे जानने का कोई तरीका या फार्मूला नही है मगर यदि कोई रास्ता है तो ये एक्जिट पोल ही हैं जिनके दम पर आप हवा किस दिशा में बह रही है ये पता लगा सकते हैं।

एक्जिट पोल कितने सटीक होते है ये जांचने के लिये बीबीसी ने 2014 से 2018 के बीच दिखाये गये सारे सर्वे का अध्ययन किया तो कुछ खास बातें सामने आयीं। पाया गया कि मतदान बाद होने वाले ये सर्वे जीत की सही भविप्यवाणी करते हैं विजेता कौन होगा ये तो ये सर्वे बता देते हैं मगर जीतने वाली पार्टी कितनी सीटें जीतेगी ये हमेशा गलत ही बताते हैं। वैसे भी सच है करोडों मतदाताओं के बीच में कुछ हजार वोटरों के बीच सर्वे कर सीटों का अंदाजा लगाना टेडी खीर है और फिर आजकल का मतदाता तो राग दरबारी के गांव शिवपालगंज के मतदाताओं जैसा हो गया है जो हर सीधी बात टेढे तरीके से बताता है। तो इन टेढे मेढे सर्वे में छिपी सीधी सी बात को समझना हर किसी की समझ की बात नहीं होती। वैसे अबकी बार मध्यप्रदेश में कौन बनेगा मुख्यमंत्री की पहेली को कुछ हद तक तो सर्वे ने सुलझा ही दिया है बाकी पहेली का हल ग्यारह तारीख को ग्यारह बजे ही पता लगेगा कि किस पार्टी के बारह बजे है।

एबीपी न्यूज
भोपाल