मानसिक बीमारी से डर क्यों?

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शिवानी थपलियाल

हम सब अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहते हैं , फिर हम ये क्यों भूल जाते हैं की हमारा दिमाग भी तो शरीर का हिस्सा ही है। इसमें भी कमी हो सकती है और इसको भी उतने ही ध्यान की ज़रूरत है जितना हम बाकि शरीर के अंगों पर देते हैं। लेकिन हमारे देश में इस बात की जागरूकता थोड़ी कम है। और जागरूकता कम होने से हमें सही ज्ञान नहीं मिल पाता।

मानसिक बीमारी वैसे ही बीमारी है जैसे कैंसर और मधुमेह। बस फरक इतना है की हमारा दिमाग रसायन से चलता है और जब इसकी कमी हो जाती है दिमाग में तो हम इसे दवा से पूर्ती करते हैं। लेकिन इसमें घबराने जैसी कोई बात नहीं है। हम दिमाग की बीमारी सुन कर ही डर जाते हैं , सोचने लगते है की ये बात सही है या नहीं। लेकिन हम भूल जाते है की दिमाग भी शरीर का हिस्सा ही है और इसमें भी कमी हो सकती है।

बात यहाँ आकर अटकती है की इसका ज्ञान कैसे प्राप्त करें ? हिंदी भाषा में मानसिक बीमारी के बारे में ज़्यादा शब्द नहीं है, बस एक ही शब्द सबसे मशहूर है “पागल”। और यही वजह है की हम अपने आप को पागल का टैग नहीं देना चाहते तो हम इसके इलाज को गंभीरता से नहीं लेते। और हमे पाता भी नहीं चल पाता और हम डिप्रेशन या किसी मानसिक बीमारी के शिकार हो जाते हैं।

आज तेज़ी से बढ़ती इस दुनिया में मानसिक बीमारी के बारे में जानना इतना मुश्किल काम नहीं है। सरकारी अस्पताल में इसका इलाज भी उपलब्ध है। बस कोशिश करनी है हमें जितनी ज़्यादा से ज़्यादा जागरूकता हम फैला सकें और अपने आप को स्व शिक्षा से मानसिक बीमारी के बारे में जाने।