मोदी का भाषण सुन क्यों जाने लगे कार्यकर्ता…

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बाखबर
राघवेन्द्र सिंह

मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बार-बार आने से कार्यकर्ता ऊबने लगे हैं, नाराज हैं, ग्राफ नीचे जा रहा है ये कौन बनेगा करोड़पति जैसे कार्यक्रम के सवाल हो सकते हैं। नवंबर में चुनाव होने हैं उसके पहले भोपाल में भाजपा कार्यकतार्ओं का 25 सितम्बर को महाकुंभ हुआ। इसमें कार्यकतार्ओं की संख्या को लेकर भी अलग अलग तरह की जादुगरी हुई है। प्रदेश में सक्रिय और गैर सक्रिय कार्यकतार्ओं की संख्या जोड़ें तो 90 लाख के ऊपर आंका जाता है। ऐसे में महाकुंभ में 10 लाख कार्यकतार्ओं को लाने का लक्ष्य रखा था।
Workers started to listen to Modi’s speech …
चूंकि महानायक के तौर पर भाजपा के नरेन्द्र मोदी और उनके नायक अमित शाह आने वाले थे तो पार्टी इस लक्ष्य के आसपास पहुंचने के प्रति विश्वास से भरी हुई थी। इस पर बिना किसी बहस के मान लिया जाए कि आंकड़ा दावे की तुलना में दो लाख को भी नहीं छू पाया। खुफिया रिपोर्ट को सही मानें तो जम्बूरी मैदान के बाहर के लोग भी मिलाएं तो सगुन के तौर पर सवा लाख कार्यकतार्ओं का आना माना जा सकता है।

राजनीति के महानायक मोदी और कौन बनेगा करोड़पति के सूत्रधार अमिताभ बच्चन के बीच हम कोई तुलना नहीं कर रहे हैं लेकिन करोड़ रुपए का सवाल ये है कि भोपाल की सभा में आए दस लाख कार्यकर्ता मोदी का भाषण शुरू होते ही कुर्सी छोड़कर जाने क्यों लगे ? संख्या भले ही सवा लाख रही हो लेकिन गुरू गोविन्द सिंह की तरह भाजपा भी कह सकती है हमारा एक एक कार्यकर्ता सवा लाख के बराबर है इसलिए एक लाख को दस लाख मान लिया जाना चाहिए। भाजपा भी सिख गुरू की तरह ह्यचिड़िया से मैं बाज लड़ाऊं, गीदड़ों को मैं शेर बनाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं तब गोविन्द सिंह नाम कहाऊंह्ण की लाइन पर चल रही है।

230 विधानसभा सीटों वाले राज्य में 15 साल की हुकूमत से उपजी एंटीइंकमबैंसी के बावजूद अबकी बार 200 पार का नारा कार्यकतार्ओं को दे रही है। अध्यक्ष अमित शाह इस नारे को भले ही उमा भारती सहित भाजपा और कार्यकतार्ओं ने गंभीरता से नहीं लिया हो मगर बता दें कि शाह साब ने ये नारा अभी बदला नहीं है। बचाव में पार्टी नेता कहते हैं कार्यकतार्ओं में जोश भरने के लिए है ये। महाकुंभ में उमा भारती ने तो कह दिया है कि 2003 में भाजपा ने 173 सीटें जीती थीं उतनी आ जाए तो बड़ी उपलब्धि होगी। सभा में अमित शाह ने कहा था ऐसी जीत दिलाईये कि हमारे दुश्मन टीवी पर खबर सुनें तो उनकी धड़कनें बंद हो जाएं।

ये एक दो बातें भाजपा नेताओं के दावे और उस पर कार्यकतार्ओं के घटते बढ़ते विश्वास का प्रमाण हैं। बढ़ते शब्द तो हमने लिहाज में लिखा है ताकि शाह और मोदी बुरा न मान जाएं। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मौके की नजाकत जानते हैं और इसलिए निजी चर्चा में कहते हैं एंटीइंकमबैंसी तो है मगर अबकी बार फिर हमारी सरकार बन रही है। मुद्दे पर लौटते हैं मोदी जी ने कार्यकर्ता महाकुंभ में जैसे ही अपना भाषण शुरू किया उसके साथ ही कार्यकतार्ओं ने जाना शुरू कर दिया। यह देख प्रबंधक और इवेन्ट के मास्टर सकते में आ गए थे। कार्यकतार्ओं के रिंग मास्टर सक्रिय हुए और उन्हें रोकने लगे।

हम इस बहस में नहीं पड़ना चाहते कि कितने कार्यकर्ता मोदी को सुनने के लिए फिर से राजी हुए। मगर इस घटना की चिन्ता पार्टी में बहुत शिद्दत से महसूस की जा रही है। प्रधानमंत्रित्व के चार साल की अवधि में ही मोदी की लोकप्रियता के घटते ग्राफ से भी जोड़कर देखा जा सकता है। एक तो मैनेजर कार्यकतार्ओं के कम संख्या में आने पर पहले से ही परेशान थे दूसरे मोदी का भाषण शुरू होते ही उनके जाने की घटना ने पसीने छुड़ा दिए। संतोष की बात ये है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान,नरेन्द्र सिंह तोमर और उमा भारती को कार्यकतार्ओं ने मन से सुना। इनकी बातों में हवाबाजी कम हकीकत ज्यादा थी।

गौरतलब है कि मोदी के अपने संसदीय क्षेत्र बनारस में भी सभा के बीच से लोग उठकर जाने लगे थे। हालांकि भीड़ का आना और जाना चुनाव जीतने हारने का कोई पैमाना नहीं है। लेकिन भाजपा संगठन और सरकार की कोशिशों के बाद कार्यकर्ता दावे की तुलना में नब्बे फीसदी कम आए तो यह संगठन शास्त्र के भाजपाई आचार्यों के लिए चुल्लु भर पानी में डूब मरने की न सही नहाने वाली बात तो हो ही जाएगी।

मोदी जी की मध्यप्रदेश यात्राएं और कार्यकतार्ओं को लेकर संख्या का टोटा पड़ना चुनाव के लिहाज से दीवार पर लिखी इबारत की तरह समझा जाना चाहिए। कार्यकतार्ओं ने एक किस्म से पार्टी और उनके आकाओं को ये संदेश दिया है कि जितना कार्यकतार्ओं को उदार,पार्टीभक्त माना जाता है वैसे हालात अब हैं नहीं। उन्हें भूखा रख जो सत्ता में कुछ चुनिंदा और अवसरवादी दल बदलुओं ने रस मलाई खाई है वह उन्हें याद है।

प्रखर राष्ट्रवाद के वादे, दावे और विचारों के बीच एट्रोसिटी एक्ट,नब्बे पार होता पेट्रोल और राफेल विवाद इस सब पर जनता के साथ कार्यकर्ता भी उद्देलित भले ही न हो चकित जरूर है। इन मुद्दों पर मोदी जी की खामोशी भाजपा और उनके समर्थकों में बेचैनी की वजह बन रही है। एट्रोसिटी के मामले में भाजपा के कट्टर वोट बैंक सवर्णों की चिंता में शामिल होते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के उस बयान को थोड़ा राहत भरा माना गया है जिसमें उन्होंने कहा है कि मध्यप्रदेश में इस एक्ट में जांच के बिना कोई कार्यवाही नहीं होगी। सियासी ही सही मगर जख्मों पर मरहम की कोशिश जरूर हुई है। जो बात शिवराज सिंह समझ पाए हैं मोदी और शाह जितनी देर से समझेंगे भाजपा को हर घंटे नुकसान उठाना पड़ेगा।

भाजपा कार्यकतार्ओं की मोदी के प्रति महाकुंभ में उदासीनता कांग्रेस के लिए एक अवसर है खुद को सरकार बनाने की लड़ाई में आगे रखने का। मगर इसके लिए उनके पास फूलछाप कांग्रेसियों से बचने और कार्यकतार्ओं को सक्रिय करने की रणनीति पर पूरी ईमानदारी से काम करना होगा। भाजपा को पता है कांग्रेस में कहां कहां विभीषण हैं। भाजपा के पास बसपा और सपा को महागठबंधन में शामिल नहीं होने देने की भी रणनीति तैयार है।

सक्रिय होंगे कैलाश विजयवर्गीय
2003 से लेकर 2013 तक भाजपा के सरकार बनाने के मामले में सक्रिय भूमिका निभाने वाले कैलाश विजयवर्गीय जल्द ही प्रदेश की सियासत में नजर आएंगे। इस संबंध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से उनकी मुलाकात को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि नेतृत्व ने उनसे कहा है कि मध्यप्रदेश के चुनाव में ज्यादा वक्त बिताएं। विजयवर्गीय के साथ कमल पटैल और अजय विश्नोई भी मुख्यमंत्री से मिले थे। इससे भाजपा कार्यालय में रौनक बढ़ने और कार्यकतार्ओं में नाराजगी कम होने की उम्मीद की जा रही है। इसी बीच पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदूभैया का कम नजर आना सबको चौंका रहा है। लोग पूछ रहे हैं कि कहां हैं नंदू भैया ?

(लेखक आईएनडी-24 समूह के प्रबंध संपादक हैं)