लोकसभा चुनाव को लेकर संतुलन नहीं बैठा पाई कांग्रेस, 10 संसदीय क्षेत्रों को नहीं मिली जगह

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भोपाल। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस मंत्रिमंडल में संतुलन नहीं बिठा पाई है। पार्टी ने 10 संसदीय क्षेत्रों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी है। जबकि कुछ संसदीय क्षेत्रों से दो-दो मंत्री लिए हैं। इससे पार्टी में अंदरूनी विरोध भी शुरू हो गया है। इसका खामियाजा पार्टी को मई में संभावित लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है।
Congress, 10 parliamentary constituencies could not get balance
ज्यादा वोट हासिल करने और कम सीटों के अंतर के बावजूद भाजपा प्रदेश में सरकार नहीं बना पाई है। इससे सबक लेते हुए भाजपा ने पांच माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। उधर, कांग्रेस अपने विधायक और समर्थन देने वाले विधायकों को साधने में लगी है।

काफी सोच-विचार के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मंगलवार को मंत्रिमंडल का गठन किया है। राजनीतिक पंडितों का आंकलन था कि मंत्रिमंडल का गठन पांच माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर किया जाएगा, लेकिन मंत्रियों के चयन में ऐसा नहीं दिखाई दिया।

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मंत्रिमंडल में 28 मंत्रियों को जगह दी है, लेकिन इसमें मुरैना, दमोह, सतना, शहडोल, खजुराहो, होशंगाबाद, उज्जैन, मंदसौर, खंडवा और झाबुआ संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीटों से जीतकर आए विधायकों को जगह नहीं मिली है। इसके अलावा रीवा संसदीय क्षेत्र भी छूटा है। यहां से पार्टी का एक भी उम्मीदवार नहीं जीता है। छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र की सभी सात सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं, लेकिन मंत्रिमंडल में इस क्षेत्र के विधायकों को भी नहीं लिया गया है। हालांकि छिंदवाड़ा मुख्यमंत्री कमलनाथ का गृह जिला है। इस तरह प्रतिनिधित्व माना भी जा सकता है।

कहां से कितनी सीटें मिलीं
मुरैना संसदीय क्षेत्र की आठ में से सात, दमोह की आठ में से चार, सतना की सात में से दो, शहडोल की आठ में से चार, खजुराहो की आठ में से दो, होशंगाबाद की आठ में से तीन, छिंदवाड़ा की सात में से सात, उज्जैन की आठ में से पांच, मंदसौर की आठ में से एक, खंडवा की आठ में से चार और रतलाम झाबुआ की आठ में से पांच विधानसभा सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं।

निकाय चुनाव पर फोकस
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस सरकार ने मंत्रिमंडल के गठन में नगरीय निकायों पर फोकस किया है। दरअसल, 2019 में नगरीय निकाय चुनाव प्रस्तावित हैं। अभी ज्यादातर निकायों में भाजपा काबिज है। कांग्रेस की मंशा है कि निकायों में पार्टी की उपस्थिति बढ़े। इसके लिए रणनीति बनाकर भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर से तुलनात्मक ज्यादा मंत्री लिए गए हैं।