TIO भोपाल
भोपाल व इंदौर में इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थिति खराब होने की वजह से जब उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा तो सारे इंजीनियरिंग कॉलेज वाले स्कूलों की तरफ रुख करते जा रहे है। नतीजतन भोपाल व इंदौर में आने वाले दिनों में स्कूलों की बाढ़ सरीखी आने वाली है। एक जानकारी के अनुसार इस साल अप्रैल में भोपाल में कम से कम 5 से 6 स्कूल आ जाएंगे वहीं इंदौर में 8 से 10 नए स्कूल आ जाएंगे। आश्चर्य की बात यह है कि जो भी इंजीनियरिंग कॉलेज वाले स्कूल खोल रहे है उन्हें न तो कोई स्कूल का तजुर्बा है न ही उसकी इतनी समझ है जिसके कारण स्कूल तो खोल लेंगे पर शिक्षा का स्तर बेहतर नहीं होगा। जबकि स्कूलों का हमेशा उद्देश्य शिक्षा पर ध्यान देना ज्यादा रहता है और इंजीनियरिंग कॉलेज हमेशा मोटी फीस ही वसूलते रहे है। अब उन्हें लग रहा है कि स्कूल खोलकर वैसे ही मोटी फीस वसूली जाए।
क्या इंजीनियरिंग या मैनेंजमेंट के कॉलेज चलाने वाले नर्सरी के बच्चों को समझने की क्षमता रखते है। या फिर उनकी भावनाओं को समझ पाएंगे। जो बच्चा ठीक से बोल ही नहीं पाता उसको समझने के लिए नर्सरी स्कूल अपने पास विशेषज्ञ की टीम रखते है। साथ ही साथ उन बच्चों को नर्सरी स्कूल पूरा समय उन पर देते है। शहर से 15 से 20 किलोमीटर दूरी पर जब बच्चा प्री नर्सरी, नर्सरी या केजी में जाएगा तो उसकी आधी जान तो निकल ही चुकी होगी इसलिए इन स्कूलों को तो कम से कम क्लास प्रथम से ही शुरू करना चाहिए पर आने वाले दिनों में सरकार ने भी मन बना लिया कि CBSE और ICSE स्कूल सब क्लास फर्स्ट से ही शुरू होंगे। इनका एफीलेशन क्लास फर्स्ट से ही होता है। यह नीति अब केंद्र सरकार ने लगभग तैयार कर ली है आने वाले समय में जल्द ही लागू भी होगी।
एक स्कूल कॉलेज के विशेषज्ञ व्यक्ति ने एक बातचीत में बताया कि कॉलेज वाले जब भी स्कूल खोलते है उसके पीछे उनका मकसद शिक्षा से कोई बहुत बड़ा लेना देना नहीं रहता उन्हें तो केवल अपनी जगह उपयोग करनी होती है। जिससे अच्छी खासी कमाई कर सके। स्कूल चलाने वाले तो लोग आजकल मिल जाते है पर अच्छे शिक्षाविद नहीं मिल पाता जिसके कारण शिक्षा का स्तर दिन व दिन गिरता जा रहा है। आज भी पुराने स्कूल है उनकी शिक्षा देने का एक अलग पैटर्न सालों से तैयार किया हुआ है जिस पर काम करते है पर साथ ही साथ समय समय पर बदलाव भी करते रहते है। देखने में यह आया है देश के कई हिस्सों में कॉलेजों की जगह जहां स्कूल खोले गए है न तो वह स्कूल सफल हुए है और न ही कोई शिक्षा के स्तर में ऊंचाई आई है हमेशा शिक्षा का स्तर खराब ही हुआ है।
सिर्फ अपना स्कूल चलाने के कारण। पैरेंटस को देखना चाहिए कि एक स्कूल को स्थापित होने में सालों लग जाते है। नया स्कूल जब आता है तो केवल प्रयोग ही करता रहता है उन प्रयोगों में सालों गुजर जाते है। और बली जो है बच्चों की चढ़ जाती है। इस देश में विडम्वना यह है कि कोई भी संस्था शिक्षा के उद्देश्य से कम ही काम करती है व्यवसाय की दृष्टि से ज्यादा काम करती है तो आने वाले दिनों में अभिभावकों को बहुत ही सोच समझ कर निर्णय करना होगा कि स्कूल का चयन कैसे करें।