प्री नर्सरी से केजी 2 तक घर के पास के स्कूलों में ही बच्चों को पढ़ाए

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प्रीति उपाध्याय
शिक्षा विशेषज्ञ

भोपाल शहर के दस नामी स्कूलों की एडमिशन संबंधित खबर 15 नवंबर को छपी एक अखबार में। इन दस स्कूलों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर बनाए गए एक चार्ट को देख कर माता-पिता अपने नन्हेंं मुन्ने बच्चों को डेढ़ ,दो और तीन साल की उम्र में ही घर से काफी दूर स्थित स्कूलों में एडमिशन कराने को न केवल मजबूर होते हैं बल्कि मासूमों के साथ सर्दी, गर्मी बरसात में लंम्बे सफर तय करवाने का अपराध करने से भी गुरेज नहीं करते है। इस चार्ट में एडमिशन एन्ट्री लेवल अलग-अलग है। (जबकि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग कुछ ओर कहती है) कहीं डेढ़-दो साल के मासूमों को शहर से 12 से 15 किलो मीटर दूर बसे स्कूलों में मजबूर किया जा रहा है तो कहीं दो साल के बच्चों को 15 से 18 किलोमीटर शहर के आउटर एरिया में अपना भविष्य संवारने जाना है।

वो कौन हैं जो इन मासूमों के अधिकारों को ताक में रख कर अमानवीय कृत्य करने को मजबूर कर रहे हैं ? अपनी ही कोख से जन्म देने वाली मां और अपने सभी सुखों को ताक मेंं रख कर मोटी फीस देने को मजबूर वो पिता आखिर क्या है इनकी मजबूरियाँ? जानना चाहेंगें आप कि क्यूँ ये अपने जिगर के टुकड़े को 10, 20 और 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्कूलों में भेजने के लिए मजबूर है।

कारण यह है कि अखबारों में आए दिन ऐसी खबरे छापी जाती है कि बच्चे का अगर नर्सरी या केजी में एडमिशन नहीं हुआ तो बाद में उसे एडमिशन नहीं मिलेगा जबकि सारे बड़े स्कूल, क्लास 1 से लेकर 10 क्लास तक अगस्त तक एडमिशन करते रहते है, लेकिन दर्शाया ऐसे जाता है जैसे सीट नहीं है। जबकि हर सीनियर सेकेंडरी लेवल के स्कूलों में उनकी अपर प्राइमरी कक्षाओं की छात्र संख्या जितने बच्चों के एडमिशन का प्रावधान कक्षा एक में (6 वर्ष)की उम्र के बच्चों के लिए किया जाना चाहिए। हर स्कूल में अपने मापदंड बना रखे है कोई दो साल में बच्चा ले लेता है तो कोई तीन में, जबकि सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के नियमों का कोई पालन नहीं करता। हालांकि यह बात अलग है। सीबीएसई एफीलेशन क्लास 1 से होता है पर यह स्कूल नर्सरी भी चलाते है। नियम कहता है प्री नर्सरी से लेकर केजी 2 तक क्लास में 26 बच्चे होने चाहिए पर बड़े स्कूल 40-40 बच्चे भर देते है। जबकि उन टीचरों को उन बच्चों के नाम तक पता नहीं होता। आखिर क्यों मना रहे है हम झूठा बालदिवस ?

पेरेंट्स, सरकारें, स्कूल, बाल आयोग.. कोई तो सोचे इन मासूमों के बारे में
दुनिया भर की रिसर्च स्टडीज की माने तो मनुष्य के ब्रेन का 80% विकास 0 से 7 वर्ष की उम्र में हो जाता है। यही वो समय है जब बच्चों के शारिरीक, मानसिक, बौद्धिक सोशल और इमोशनल विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ वातावरण दिया जाना चाहिए। और हम हैं कि देश के भावी कर्णधारों को सबसे असुरक्षित और असुविधाजनक वातावरण देने की होड़ मेंं शामिल होने से तनिक भी नहीं सकुचाते।

आइए बच्चों का त्यौहार बालदिवस -उनकी सुख सुविधा को ध्यान में रखकर मनाऐं। हम उनके हक में कुछ फैसले लें
1) नामी गिरामी स्कूल पेरेंट्स को 6 साल के बच्चे को एडमिशन नहीं देने का नियम बता कर डराना बंद करें।
2) हर स्कूल की क्लास वन में आगे की कक्षाओं के बराबर सीटें उपलब्ध कराई जाऐं।
3) शहर में बसे नर्सरी स्कूल और फाउंडेशन स्कूलों में ही बच्चों को पढ़ाए, जिससे बच्चे भी सुरक्षित रहे और बच्चे की सेहत भी बेहतर रहे और कोई डर भी न हो।
4) नर्सरी और केजी का सिलेबस में एकरूपता की शपथ लें ताकि उनके शारिरीक और बौद्धिक विकास में किसी तरह का काम्पिटिशन न होने पाए। आई क्यूँ से कहींं ज्यादा ई०क्यू० के बारे मेंं ध्यान दिया जाए।
5) प्रत्येक स्कूल के टीचर्स और पेरेंट्स की चाइल्ड डेवलपमेंट संबंधी ट्रेनिंग अनिवार्य हो।
इन तमाम बुनियादी बातों पर गौर किया जाना और अमल मेंं लाना देश की सेहत के लिए उतना ही जरूरी है जितना हर इंसान को जिंदा रहने के लिए पानी और खाने की। अभी नहीं तो फिर कब…?