स्मृति शेष / भाजपा के पहले ऐसे नेता जो मध्यप्रदेश विधानसभा में लगातार 10 बार जीतकर पहुंचे

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TIO भोपाल

  • बाबूलाल गौर 23 अगस्त 2004 से 29 नवंबर 2005 तक मप्र के मुख्यमंत्री रहे थे
  • गौर मध्य प्रदेश के पहले नेता, जो 10 बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे
  • वे 1974 से 2013 तक दक्षिण भोपाल और गोविंदपुरा सीट से लगातार विधायक रहे थे

राजधानी के सबसे लोकप्रिय नेता बाबूलाल गौर का निधन हो गया है। गौर का जन्म 2 जून 1930 को उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था। वे भाजपा के एक अकेले नेता रहे जिन्होंने मध्यप्रदेश विधानसभा के लगातार 10 चुनाव जीते। 23 अगस्त 2004 से 29 नवंबर 2005 तक वे मप्र के मुख्यमंत्री रहे। 2013 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा फिर सत्ता में आई और उन्हें मंत्री बनाया गया।

बढ़ती उम्र का हवाला देकर पार्टी ने उनसे इस्तीफा ले लिया था। इस घटना के बाद गौर काफी दुखी हुए थे। राजनीति में आने से पहले बाबूलाल गौर ने भोपाल की कपड़ा मिल में मजदूरी की थी। श्रमिकों के हित में अनेक आंदोलनों में भाग लिया था। वे भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक सदस्य हैं। 1974 में मध्य प्रदेश शासन द्वारा बाबूलाल गौर को ‘गोआ मुक्ति आंदोलन’ में शामिल होने के कारण ‘स्वतंत्रता संग्राम सेनानी’ का सम्मान प्रदान किया गया था।

जब उमा ने इस्तीफा मांगा तो गौर ने इनकार कर दिया था

2003 में मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा भारी बहुमत से 10 साल बाद सत्ता में लौटी। उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं। एक साल के अंदर ही उनके नाम कर्नाटक के हुबली शहर की अदालत से वॉरंट जारी हो गया। 10 साल पुराने मामले में उमा भारती को भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के कहने पर इस्तीफा देना पड़ा था। उमा ने गौर को ये सोचते हुए मुख्यमंत्री बनवाया कि वे जब कहेंगी गौर त्यागपत्र दे देंगे। उमा ने उन्हें गंगाजल हाथ में रखकर कसम दिलाई थी कि जब कहूं तब सीएम की कुर्सी छोड़ देना। लेकिन, क्लीन चिट मिलने पर जब उमा ने उनसे इस्तीफा मांगा तो गौर ने साफ मना कर दिया था।

भाजपा ने उम्र का हवाला देकर साइड लाइन कर दिया था

बाबूलाल गौर ने 23 अगस्त 2004 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उन्होंने दक्षिण भोपाल और गोविंदपुरा सीट से 10 बार चुनाव जीता। जून 2016 में भाजपा आलाकमान ने उम्र का हवाला देकर गौर को मंत्री पद छोड़ने के लिए कहा था। पार्टी के इस निर्णय से वे स्तब्ध और दुखी थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा न तो उन्हें टिकट देना चाहती थी न उनकी पुत्रबधू कृष्णा को। गौर ने बगावती तेवर अपना लिए और पार्टी के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी। आखिरकार भाजपा ने कृष्णा गौर को टिकट दिया और कृष्णा को इस सीट पर जीत मिली।

 

भाजपा नेताओं ने गौर को दी श्रद्धांजलि

वामपंथी पार्टी से शुरू किया था राजनीतिक सफर
बाबूलाल गौर ने अपना राजनीतिक जीवन वामपंथी पार्टी से शुरू किया था। पार्टी का मजदूर संगठन अक्सर मिल में हड़ताल कर देता था, जिससे रोजाना के हिसाब से तनख्वाह कट जाती थी। कुछ समय तक ऐसा चला। देखा तो हर महीने 10 से 15 रुपए तनख्वाह हड़ताल के कारण ही कट जाती थी, इससे मजदूरों को काफी नुकसान होता था। इस पर गौर ने लाल झंडा छोड़कर कांग्रेस का संगठन इंटक ज्वाइन कर लिया, लेकिन वहां भी मजदूर हित में काम नहीं होते देखा तो संघ का भारतीय मजदूर संघ ज्वाइन किया।

 भाजपा नेताओं ने गौर को दी श्रद्धांजलि

जेपी ने जीवनभर जनप्रतिनिधि बने रहने का आशीर्वाद दिया था
गौर को 1971 में जनसंघ ने पहली बार भोपाल से विधानसभा का टिकट दिया। वे करीब 16 हजार वोटों से चुनाव हार गए। इसके बाद जेपी का आंदोलन देशभर में शुरू हुआ। भोपाल में हुए आंदोलन में गौर शामिल हुए। फिर विधानसभा चुनाव आए तो जेपी ने जनसंघ के नेताओं से कहा कि यदि गौर को निर्दलीय खड़ा किया जाएगा तो वे उनका सपोर्ट करेंगे। उस समय जनसंघ के संगठन महामंत्री कुशाभाऊ ठाकरे थे। उन्होंने इसकी अनुमति दी। गौर ने 1974 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और पहली बार जीत हासिल की थी। कुछ समय बाद जेपी भोपाल आए तो गौर ने उनके सर्वोदय संगठन को 1500 रुपए का चंदा दिया। जेपी ने उन्हें जीवन भर जनप्रतिनिधि बने रहने का आशीर्वाद दिया था।

 

गौर जो ठान लेते मनवाकर ही रहते थे, जनहित के मुद्दों से कभी समझौता नही किया: कमलनाथ

मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम और भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर के निधन से राजनीति में शोक की लहर छा गई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के नेताओं ने उनके निधन पर श्रद्धांजलि दी है।मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा क पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल ग़ौर के निधन का समाचार मुझे स्तब्ध करने वाला है। आज मेने एक अच्छा मित्र , अच्छा साथी खो दिया है।उनसे मेरे सदैव क़रीबी संबंध रहे। वे एक ज़िंदादिल , बेबाक़ शैली के , सीधे साधे सरल व्यक्ति थे। उन्होंने हमेशा निर्भिकता , बेबाक़ी से अपने विचार व्यक्त किये और खुलेमन से अपना जीवन जिया।

कमलनाथ ने कहा कि प्रदेश के विकास ख़ासकर भोपाल के विकास की उन्हें हमेशा चिंता रहती थी।जब में केंद्रीय मंत्री था , हमेशा मध्यप्रदेश की कई योजनाओं को लेकर मेरे पास आते थे और राशि स्वीकृत कराकर ले कर जाते थे।जो वे ठान लेते थे , उसे मनवाकर रहते थे। जनता के साथ उनका जीवंत संपर्क था।जनहित के मुद्दों पर कोई समझौता नहीं करते थे।स्पष्टवादिता के कारण अपने विचारों में कभी उन्होंने दलगत राजनीति नहीं आने दी , पार्टी लाइन से भी परे हटकर अपने विचार खुलेमन से रखते थे।मेरे साथ विदेश दौरे पर भी गये। मेरे प्रति सदैव उनका प्रेम , स्नेह रहा। हमारे रिश्तों , संबंधो में कभी दलीय राजनीति आड़े नहीं आयी।

नाथ ने कहा कि आज एक ज़िंदादिल , हँसता , मुस्कुराता साथी हमारे बीच से चला गया। उनकी कमी हमेशा मुझे अखरेगी। परिवार के प्रति मेरी शोक संवेदनाएँ। में ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और परिवार को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करे।